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लब्धिसारः। बाद बहुत स्थितिखण्ड होनेपर पल्यके प्रमाण स्थितिसत्त्व होता है ॥ ११९ ॥ इस प्रकार यह दूसरा पर्व हुआ।
पल्लटिदिदो उवरि संखेजसहस्समेत्तठिदिखंडे। दूरावकिट्टिसण्णिद ठिदिसंते होदि णियमेण ॥ १२० ॥ पल्यस्थितित उपरि संख्येयसहस्रमात्रस्थितिखंडे ।
दूरापकृष्टिसंज्ञितं स्थितिसत्त्वं भवति नियमेन ॥ १२० ॥ अर्थ-उस पल्य स्थितिसत्त्वके वाद पल्यको संख्यातका भाग देनेसे बहुभागमात्र आयामवाले ऐसे संख्यातहजार स्थितिखण्ड होजानेपर दूरापकृष्टि नामा स्थितिसत्त्व नियमसे होता है ॥ १२० ॥ यह तीसरा पर्व हुआ।
पल्लस्स संखभागं तस्स पमाणं तदो असंखेज । भागपमाणे खंडे संखेजसहस्सगेसु तीदेसु ॥ १२१ ॥ सम्मस्स असंखाणं समयपबद्धाणुदीरणा होदि । तत्तो उरि तु पुणो बहुखंडे मिच्छउच्छि8॥ १२२ ॥ पल्यस्य संख्यभागं तस्य प्रमाणं तत असंख्येयं । भागप्रमाणे खंडे संख्येयसहस्रकेषु अतीतेषु ॥ १२१ ॥ सम्यक्त्वस्यासंख्यानां समयप्रबद्धानामुदीरणा भवति ।
तत उपरि तु पुनः बहुखंडे मिथ्योच्छिष्टम् ॥ १२२ ॥ अर्थ--उस दूरापकृष्टि नामा स्थितिसत्त्वका प्रमाण पत्यके संख्यातवें भागमात्र जानना । उसके बाद पल्यको असंख्यातका भाग देनेपर बहुभागमात्र आयाम ( काल ) लिये ऐसे संख्यात हजार स्थिति खण्ड होनेपर सम्यक्त्वमोहनीयका द्रव्य अपकर्षण किया उसमें असंख्यात समयप्रबद्धमात्र उदीरणा द्रव्यको उदयावलिमें देते हैं अर्थात् उदीरणारूप उदय होता है । उसके वाद फिर पल्यको असंख्यातका भाग देकर बहुभाग मात्र कालको लिये ऐसे बहुत स्थितिखण्ड होनेपर मिथ्यात्वके उच्छिष्टावलिमात्र निषेक बाकी रहते हैं अन्य सब मिथ्यात्वप्रकृतिका द्रव्य मिश्रमोहनीय व सम्यक्त्व मोहनीरूप परिणमता है ॥ १२१ । १२२॥
जत्थ असंखेजाणं समयपबद्धाणुदीरणा तत्तो। पल्लासंखेज दिमो हारेणासंखलोगमिदो ॥ १२३ ॥ यत्रासंख्येयानां समयप्रबद्धानामुदीरणा ततः ।
पल्यासंख्येयः हारेणासंख्यलोकभितः ॥ १२३ ॥ अर्थ-जिस कालमें असंख्यात समयप्रबद्धकी उदीरणा होवे अर्थात् ऊपरके निषेकोंका