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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । अन्तर्मुहूर्तमात्र आयाम धारण करते हैं । यहांसे अब एक एक स्थितीकांडककर अंतर्मुहूर्त. मात्र स्थिति घटाते हैं ॥ १३० ॥
विदियावलिस्स पढमे पढमस्संते च आदिमणिसेये । तिट्ठाणेणंतगुणेणूणकमोवट्टणं चरमे ॥ १३१॥ द्वितीयावलेः प्रथमे प्रथमस्यांते चादिमनिषेके।
त्रिस्थानेनंतगुणेनोनक्रमापवर्तनं चरमे ॥ १३१ ॥ अर्थ-द्वितीयावलिके पहले समयमें प्रथमावलिके अन्तसमयमें और आदिके निषेकमें इसतरह तीन स्थानोंमें समय समय प्रति अनन्तगुणा घटता क्रमसे उच्छिष्टावलिके अन्तसमय पर्यंत अनुभागका अपवर्तन ( नाश ) जानना चाहिये ॥ १३१ ॥
अडवस्से उवरिंमि वि दुचरिमखंडस्स चरिमफालित्ति । संखातीदगुणकम विसेसहीणक्कम देदि ॥ १३२॥ अष्टवर्षात् उपरि अपि द्विचरमखंडस्य चरमफालीति ।
संख्यातीतगुणक्रमं विशेषहीनक्रमं ददाति ॥ १३२॥ अर्थ-आठवर्षस्थितिसे ऊपर स्थितिमें प्रथमफालिके पतनरूप प्रथमसमयसे लेकर द्विचरमकांडककी अन्तफालिके पतनसमयतक गुणश्रेणी आदिके लिये अपकर्षण किये द्रव्यका और स्थिति घटानेकेलिये ग्रहण किये गये स्थितिकांडककी फालिके द्रव्यका उदयादि अवस्थितिगुणश्रेणी आयाममें तो असंख्यातगुणा कम लिये हुए तथा अन्तर्मुहूर्तकम आठवर्षप्रमाण ऊपरकी स्थितिमें चय घटता क्रम लिये हुए निक्षेपण होता है ॥ १३२ ॥ . आगे यहां स्पष्ट अर्थ जानकेलिये आठवर्ष करनेके समयसे पहले समयमें अथवा आठ वर्ष करनेके समयमें वा आगामी समयोंमें संभव विधान कहते हैं;
अडवस्से संपहियं पुचिल्लादो असंखसंगुणियं । उवरिं पुण संपहियं असंखसंखं च भागं तु ॥ १३३ ॥ अष्टवर्षे संप्रहितं पूर्वस्मात् असंख्यसंगुणितं ।
उपरि पुनः संप्रहितं असंख्यसंख्यं च भागं तु ॥ १३३ ।। अर्थ-आठ वर्ष स्थिति अवशेष करनेके समयमें जो मिश्रसम्यक्त्वमोहनीकी अन्तकी दो फालियोंका द्रव्य है वह इससे पूर्वसमयके द्विचरमफालिके अन्ततक तो गुणसंक्रमद्रव्यसहित सम्यक्त्वमोहनीका सत्त्वद्रव्य उससे असंख्यात गुणा है । और प्रथमकांडककी द्विचरमफालितक असंख्यातवें भागमात्र तो दीयमान द्रव्य है और अन्तफालिका द्रव्य संख्यातवें भागमात्र है ॥ १३३ ॥