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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । अर्थ-उससे अधिक अपूर्वकरणके पहले समयमें प्रारंभ होनेवालेका काल है । उससे संख्यातगुणा गुणसंक्रम पूरण करनेका काल है उससे संख्यात गुणा गुणश्रेणीशीर्ष है उससे संख्यातगुणा प्रथम स्थितिका आयाम है उससे समयकम दो आवलिमात्र विशेषकर अधिक दर्शनमोहके उपशमानेका काल है ॥ ९४ ॥ .
अणियट्टियसंखगुणे णियट्टिए सेढियायदं सिद्धं । उवसंतद्धा अंतर अवरावरवाह संखगुणिदकमा ॥ ९५॥ अनिवृत्तिकसंख्यगुणं निवृत्तिकं श्रेण्यायतं सिद्धम् ।
उपशांताद्धा अंतरमवरवरबाधा संख्यगुणितक्रमा ॥ ९५ ॥ अर्थ-उससे संख्यातगुणा अनिवृत्ति करण काल है उससे संख्यात गुणा अपूर्वकरण काल है उससे अनिवृत्तिकरणकाल और इसका संख्यातवां भागमात्र विशेषकर अधिक गुणश्रेणि आयाम है उससे संख्यातगुणा उपशम सम्यक्त्वकाल है । उससे संख्यातगुणा अन्तरायाम है । उससे संख्यात गुणी जघन्य आबाधा है उससे संख्यातगुणी उत्कृष्ट आबाधा है ॥ ९५॥
पढमापुवजहणं ठिदिखंडमसंखमं गुणं तस्स । वरमवरहिदिसत्ता एदे य संखगुणियकमा ॥ ९६ ॥
प्रथमापूर्वजघन्यं स्थितिखंडमसंख्यातं गुणं तस्य ।
वरावरस्थितिसत्त्वे एतानि च संख्यगुणितक्रमाणि ॥ ९६ ॥ अर्थ-उससे संख्यात गुणा पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण जघन्यस्थितिकांडक आयाम है उससे संख्यातगुणा अपूर्वकरणके पहले समयमें संभव उत्कृष्ट स्थितिकांडक आयाम है उससे संख्यातगुणा मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिबन्ध है उससे संख्यातगुणा अपूर्वकरणके पहले समयमें संभव उत्कृष्ट स्थिति बन्ध है उससे संख्यात गुणा मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसत्त्व है उससे संख्यातगुणा अपूर्वकरणके प्रथमसमयमें संभवता उत्कृष्ट स्थिति सत्त्व है। यहां पर जघन्य स्थितिबन्धादि चार पदोंका प्रमाण सामान्यरीतिसे अन्तःकोड़ाकोड़ी सागर है ॥ ९६ ॥ इसतरह पच्चीस जगह अल्पबहुत्व कहा गया है।
अंतो कोडाकोडी जाहे संखेजसायरसहस्से । णूणा कम्माण ठिदी ताहे उवसमगुणं गहइ ॥ ९७ ॥ अंतःकोटीकोटिर्यदा संख्येयसागरसहस्रेण ।
न्यूना कर्मणां स्थितिः तदा उपशमगुणं गृह्णाति ॥ ९७ ॥ अर्थ-जिस अन्तरायामके प्रथमसमयमें संख्यातहजार सागरसे कम अन्तःकोड़ाकोड़ीसागरमात्र कर्मोंका स्थितिसत्त्व होवे उससमयमें उपशमसम्यक्त्वगुणको ग्रहण करता है ॥९७॥