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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । समये समये भिन्ना भावा तस्मादपूर्वकरणो हि ।
अनिवृत्तिरपि तथैव च प्रतिसमयमेकपरिणामः ॥ ३६ ॥ अर्थ-समय समयमें जीवोंके भाव जुदे २ ही होते हैं इसीलिये ऐसे परिणामका नाम अपूर्वकरण है । और जहां हरसमयमें एक ही परिणाम हो वह अनिवृत्ति करण है। भावार्थ-किसी जीवको अपूर्वकरण शुरू कियें थोड़ाकाल हुआ किसीको बहुतकाल हुआ वहां उनके परिणाम सर्वथा समान नहीं होते। नीचले समयवालोंके परिणामसे ऊपरले समयवालोंका परिणाम अधिकसंख्यावाला विशुद्धता सहित होता है और जिनको करण प्रारंभ कियें समान काल होगया उनके परिणाम आपसमें समान भी होते हैं अथवा असमान भी होते हैं । जिनको अनिवृत्तिकरण प्रारंभ किये समान काल हुआ उनके परिणाम समान ही होते हैं और नीचले समयवालोंसे ऊपरले समयवालोंके अधिक होते हैं ऐसा जानना ॥ ३६ ॥
गुणसेढी गुणसंकम ठिदिरसखंडं च णत्थि पढमम्हि । पडिसमयमणंतगुणं विसोहिवड्डीहिं वहदि हु॥ ३७॥
गुणश्रेढी गुणसंक्रमं स्थितिरसखंडं च नास्ति प्रथमे । .
प्रतिसमयमनंतगुणं विशुद्धिवृद्धिभिर्वर्धते हि ॥ ३७॥ अर्थ—पहले अधःकरणमें गुणश्रेणी गुणसंक्रम स्थितिकांडकघात अनुभागकांडकघात नहीं होता और यहां समय २ में अनंतगुणी विशुद्धता वढती है ॥ ३७ ॥
सत्थाणमसत्थाणं चउविट्ठाणं रसं च बंधदि हु। पडिसमयमणंतेण य गुणभजियकमं तु रसबंधे ॥ ३८॥
शस्तानामशस्तानां चतुर्विस्थानं रसं च बध्नाति हि ।
प्रतिसमयमनंतेन च गुणभजितक्रमं तु रसबंधे ॥ ३८ ॥ अर्थ-साता आदि शुभप्रकृतियोंका हरसमय अनंतगुणा चारस्थानरूप अनुभाग बांधता है और असाता आदि अप्रशस्त प्रकृतियोंका समय समयके प्रति अनंतवें भाग ही अनु. भाग बांधता है ॥ ३८॥
पल्लस्स संखभागं मुहुत्तअंतेण उपरदे बंधे । संखेजसहस्साणि य अधापवत्तम्मि ओसरणा ॥ ३९ ॥
पल्यस्य संख्यभागं मुहूर्तातरेण उपरते बंधे।
संख्येयसहस्राणि च अधःप्रवृत्ते अपसरणानि ॥ ३९ ॥ अर्थ-अधःप्रवृत्तकरणके पहले समयसे लेकर अंतर्मुहूर्ततक पूर्वस्थिति बंधसे पल्यके असंख्यातवें भाग घटता हुआ स्थिति बंध होता है । और उसके वाद अंतर्मुहूर्ततक उससे भी पल्यके असंख्यातवें भाग घटता हुआ स्थितिबंध होता है । इस तरह एक अंतर्मुहूर्तकर