________________
रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । एकैकस्थितिकांडकनिपतनस्थितिबन्धापसरणकाले।
संख्येयसहस्राणि च निपतन्ति रसस्य खंडानि ॥ ७९ ॥ अर्थ-जिसकर एकवार स्थिति सत्त्व घटाया जावे वह स्थितिकांडकौत्करणकाल है, और जिसकर एकवार स्थितिबन्ध घटाया जावे वह स्थितिबन्धापसरण काल है । ये दोनों समान हैं अन्तर्मुहूर्तमात्र हैं। उन दोनोंमेंसे किसी एकमें जिसकर अनुभागसत्व घटाया जाता है ऐसे अनुभागखंडोत्करणकाल संख्यात हजार होते हैं ॥ ७९ ॥
असुहाणं पयडीणं अणंतभागा रसस्स खंडाणि । सुहपयडीणं णियमा णस्थित्ति रसस्स खंडाणि ॥ ८॥ __ अशुभानां प्रकृतीनामनन्तभागा रसस्य खण्डानि ।
शुभप्रकृतीनां नियमान्नास्तीति रसस्य खण्डानि ॥ ८०॥ अर्थ-अशुभरूप असातादि प्रकृतियोंका अनुभागखण्ड ( अनुभागकाण्डकायाम ) अनन्त बहुभाग मात्र होता है । और साता वेदनीय आदि शुभ प्रकृतियोंका अनुभांगकांडक घात नियमसे नहीं है ॥ ८० ॥
रसगदपदेसगुणहाणिट्ठाणगफड्ढयाणि थोवाणि । अइत्थावणणिक्खेवे रसखंडेणंतगुणियकमा ॥ ८१॥ रसगतप्रदेशगुणहानिस्थानकस्पर्धकानि स्तोकानि ।
अतिस्थापननिक्षेपे रसखण्डेऽनन्तगुणितक्रमाणि ॥ ८१ ॥ अर्थ-अनुभागको प्राप्त ऐसे कर्मपरमाणुओंके एकगुणहानिस्थानमें थोड़े स्पर्धक होते हैं उससे अनन्तगुणे अतिस्थापनारूप स्पर्धक हैं उससे अनन्तगुणा अनुभागकांडक आयाम
पढमापुवरसादो चरिमे समये पअच्छइदराणं । रससत्तमणंतगुणं अणंतगुणहीणयं होदि ॥ ८२॥
प्रथमापूर्वरसात् चरमे समये प्रशस्तेतरेषाम् ।। ___रससत्त्वमनन्तगुणमनन्तगुणहीनकं भवति ॥ ८२॥ अर्थ-अपूर्वकरणके पहले समयका प्रशस्त और अप्रशस्त प्रकृतियोंका अनुभागसत्त्व उससे उसके अन्तसमयमें प्रशस्तोंका अनन्तगुणा बढता हुआ और अप्रशस्तोंका अनन्तगुणा घटता हुआ अनुभागसत्त्व होता है ॥ ८२ ॥ आगे अनिवृत्तिकरणके कार्य कहते हैं
बिदियं व तदियकरणं पडिसमयं एक एक परिणामो। अण्णं ठिदिरसखंडे अण्णं ठिदिबंधमाणुवई ॥ ८३ ॥