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रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् । कहारका भागदेनेसे चयका प्रमाण होता है । उस चयको निषेक हारसे ( दो गुणहानिसे) गुणा करनेपर आवलीके प्रथम निषेकके द्रव्यका प्रमाण आता है। उससे द्वितीयादिनि.
कोंमें दिये क्रमसे एक एक चयकर घटता प्रमाण लिए जानना । वहां एक कम आवलीमात्र चय घटनेपर अंतनिषेकमें दिये द्रव्यका प्रमाण होता है। ऐसे उदयावलिके निषे. कोंमें दिये द्रव्यका विभाग है ॥ ७१ । ७२ ॥
उक्कद्विदम्हि देदि हु असंखसमयप्पबंधमादिम्हि । संखातीदगुणक्कममसंखहीणं विसेसहीणकमं ॥७३॥
अपकर्षिते ददाति हि असंख्यसमयप्रबद्धमादौ ।
संख्यातीतगुणक्रममसंख्यहीनं विशेषहीनक्रमम् ॥ ७३ ॥ अर्थ-गुणश्रेणीकेलिये अपकर्षण किये द्रव्यको प्रथमसमयकी एक शलाका उससे दूसरेकी असंख्यातगुणी इसतरह अंत समयतक असंख्यातगुणा क्रमलिये हुए जो शलाका उनको जोड़ उसका भाग देनेसे जो प्रमाण आवे उसको अपनी २ शलाकाओंसे गुणाकरनेसे गुणश्रेणिआयामके प्रथमनिषेकमें दिया द्रव्य असंख्यात समयप्रबद्ध प्रमाण आता है । उससे द्वितीयादिनिषेकोंमें द्रव्य क्रमसे असंख्यातगुणा अंत समयतक जानना । प्रथम. निषेकमें द्रव्य गुणश्रेणीके अंत निषेकमें दिये द्रव्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । प्रथम गुणहानिका द्वितीयादि निषेकोंमें दिया द्रव्य चय घटता क्रमलिये हुए है ॥ ७३ ॥
पडिसमयं उक्कद्ददि असंखगुणियकमेण संचदिय । इदि गुणसेढीकरणं आउगवजाण कम्माणं ॥ ७४ ॥
प्रतिसमयमपकर्षति असंख्यगुणितक्रमेण संचिनोति । __इति गुणश्रेणीकरणमायुष्कवानां कर्मणाम् ॥ ७४ ॥ अर्थ-गुणश्रेणी करनेके द्वितीयादि अंतपर्यंत समयोंमें समय समयके प्रति असंख्यात गुणा क्रम लिये द्रव्यको अपकर्षण करता है और संचित अर्थात् पूर्वोक्त प्रकार उदयावलि आदिमें उसे निक्षेपण करता है । ऐसे मिथ्यात्वकी तरह आयुके विना सातकोंका गुणश्रेणीविधान समय २ में होता है सो जानना ॥ ७४ ॥ आगे गुणसंक्रमणका खरूप कहते हैं;
पडिसमयमसंखगुणं दवं संकमदि अप्पसत्थाणं । बंधुझियपयडीणं बंधं संजादिपयडीसु ॥ ७५ ॥
प्रतिसमयमसंख्यगुणं द्रव्यं संक्रामति अप्रशस्तानां ।
बन्धोज्झितप्रकृतीनां बन्धं स्वजातिप्रकृतिषु ॥७५ ॥ .. अर्थ-जिनका बन्ध न पाया जावे ऐसी अप्रशस्त प्रकृतियोंका द्रव्य है वह समय २