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वहां पर आचार का भी सूक्ष्मतम निरूपण किया है । सम्यक्-आचार ही समाचार, या समाचारी है। दिगम्बर ग्रन्थों में भी ये शब्द व्यवहृत हुए है और उसके चार अर्थ किये गये हैं :
(१) समता का आचार (२) सम्यक् आचार (३) सम (तुल्य) आचार (४) समान (परिमाण युक्त) आचार.
संक्षेप में समाचारी शब्द का अर्थ है-मुनि का आचार-व्यवहार, एव इतिकर्तव्यता । प्रस्तत परिभाषा के प्रकाश में श्रमण जीवन को वे सारी प्रवृत्तिया समाचारी मे आ जाती है जो वह महर्निश करता है।
आवश्यक नियुक्तिकार भद्रबाहु ने समाचारी के तीन प्रकार बतलाये है-(१) ओघसमाचारी (२) दस-विध समाचारी, (३) पद विभाग समाचारी।"
ओघ समाचारी का निरूपण 'ओघ नियुक्ति' में किया गया है। उसके (१) प्रतिलेखन, (२) पिण्ड, (३) उपधि-प्रमाण (०) अनायतन (अस्थान) वर्जन, (५) प्रतिसेवना-दोषाचरण, (६) आलोचना और विशोधि,६२ ये सात द्वार है।
दसविध समाचारी का वर्णन भगवती ३ स्थानाग ४ उत्तराध्ययन५ आवश्यक नियुक्ति मादि में मिलता है । पद-विभाग समाचारी का वर्णन छेद सूत्रो में वर्णित है। कल्पसूत्र में जो समाचारी का वर्णन है वह पद-विभाग-समाचारी मे आता है। वादिबेतालशान्ति सरि ने उत्तराध्ययन को वृहदवृत्ति मे ओघसमाचारी का अन्तर्भाव धर्मकथानुयोग मे और पदविभाग समाचारी का अन्तर्भाव चरण करणानयोग में किया है। कल्पसूत्र की समाचारी चरण करणानयोग के अन्तर्गत है।
राक्टर विन्टर नीटस ने भी समाचारी विभाग को कल्पसूत्र का प्राचीनतम भाग होने की सभावना की है, और अपने अनुमान की पुष्टि में उनका यह कहना है कि कल्पसूत्र का पूरा नाम 'पयुषणा कल्प' यह समाचारी विभाग के कारण ही है।
६०. समदा समाचारो, सम्माचारो समो व आचारो। सब्वेसि सम्माणं समाचारो हु आचागे॥
-मूलाचार गाथा १२३ ११. आवश्यक नियुक्ति, गाथा ६६५ १२. पडिलेहणं च पिण्डं, उवहिपमाण अणाययण वज्ज । पडिसेवणमालोअण, जह य विसोही सुविहियाणं ।
-ओधनियुक्ति , २ ६३. भगवती २५१७ १४. स्थानांग १०१७४६ १५. उत्तराध्ययन-अ०६६ मा० २-३-४ ६६. मावश्यक नियुक्ति
(१) आवश्यकी, (२) नषेधिको, (६) आपृच्छा (४) प्रतिपृच्छा (५) वन्दना, (६) इच्छाकार, (७) मिच्छाकार, (८) तथाकार, () अभ्युत्थान (१०) उपसंपद । १७ हिस्ट्री आफ इंडियन लिटरेचर पृ० डा० विटरनीट्स लिखित