Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 23
________________ अप्रतिष्ठित प्रत्येक वनल्पति अपवर्तनोद्वर्तन अपवर्तनोद्वर्तन-अश्वकर्ण करण १२०४ अ। क्षेत्र २१६७, स्पर्शन ४४७७, काल २१००, अन्तर अपवर्त्य -१११६ ब। १.७, भाव ३२२२ ब, अल्पबहुत्व ११४३ । अपवाद--१११६ब, पद्धति ३६ ब, पर्याय ३४५ ब । अपूर्वकृष्टि-२१४१ अ । अपवाद-मार्ग--अपवाद ११२०-१२३ अ, ब । कृतिकर्म अपूर्व चैत्यक्रिया-२१३८ ब । २१३७ अ. शुभोपयोग १४३३ ब। अपूर्व स्पर्धक---कृष्टि २१४० ब, २१४१ ब, चारित्रमोह अपवाद लिग --३४१७ अ, ३ ४१६ अ, ब । क्षपणा २१८० ब, सूक्ष्मसाम्पराय ४४४१ ब, स्पर्धक अपशब्द-खंडन -११२३ ब। ४४७३. ब। अपसरण ---अपकर्षण १११५ अ । अपूर्वार्थ–१ १२५ ब । अपसिद्धान्त-११२३ ब, कर्ता कर्म २२२ ब । अपेक्षा-अनेकान्त ११०८ व, ११०६ अ, १११० अ, अपहृत-अन्तर्मुहुर्त १३० अ । अभाव ४५०७ अ, एकान्त १४६१-४६३ अ, जीट अपहृत संयम-अपवाद-मार्ग ११२० ब, चारित्र कर्म सम्बन्ध २७० ब, स्वभाव २६० अ, स्याद्वाद २२८५ अ, २२६२ अ, शुभोपयोग १४३३ अ-ब, ४४९८ अ । सयम ४२३७ ब। अपेक्षाकत-४५०७ अ । अपाच्य--११२३ ब । अपोह-११२५ ब । अपात्र-११२३ ब, उपदेश १४२५ब, ४७५ अ, दान अपोहरूपता-१.१२५ ब । २४२६ ब, पात्र ३५२ अ, ब । अपोहा-ऊहा १.४४५ ब । अपादान कारक-११२३ ब कारक २४६अ। अपोही--११२५ ब । अपादान-शक्ति-११२४ अ । अपौरुषेय -१ १२५ ब, १२३८ ब । अपान-११२४ अ। अप्पय दीक्षित-३५६५ ब । अपाप-११२४ अ, तीयंकर २३७१ । अप्रकाश-४ ३८६ अ। अपाय-११२४ अ, अवाय १२०२ अ, ध्येय २५०० अ, अप्रणतिवाक-३ ४६७ ब। भावना १२१४ ब, १२१६ अ। अप्रतिकर्म-११२५ ब । अपायविचय--११२४ अ, उपाय विचय २४७६ अ, अप्रतिक्रमण-अमृतकुम्भ २२८८ ब, अशभोपयोग धर्मध्यान २४८२ ब । १.४३३ ब, प्रतिक्रमण ३.११६ ब । अपार्थक-११२४ अ। अप्रतिघात--११२६ अ, १२२३ ब, ऋद्धि १४४७, अपुनरागमन--३ ३२४ ब । १४५१ ब, सूक्ष्म ४४३६ ब । अपुनरुक्त अक्षर--१२२८ ब । अप्रतिचक्रेश्वरी-११२६ अ, पद्मप्रभनाथ २३७६ । अपूर्वकरण --११२४ अ । अध प्रवृत्तिकरण २ १३ अ, अप्रतिपक्ष प्रकृति-३ ६१ अ। अनिवत्तिकरण २१४ अ, आरोहण-अवरोहण अप्रतिपत्ति-११२६ अ, व्यक्ति ३६१६ अ। २२४७ अ, उपशम १४४१ अ, उपशामक ४३४३ अ, अप्रतिपातिकी-३२६७ ब । करण दशक २६ अ, कषाय २.४० ब, काय २४५ ब, अप्रतिपाती-११२६ अ, अवधिज्ञान ११८८ ब, कालावधि का अल्पबहुत्व ११६१, क्षपक ४.३४३ अ, ११९४ अ । चारित्रमोह क्षपणा २१८० ब, परिणाम २११-१३, अप्रतिबुद्ध-११२६ अ। परिषह ३ ३४ अ, बन्धक ३१८० अ, सूक्ष्मसाम्पराय अप्रतिभा-११२६ अ । ४८६ अ। अप्रतियोगी-११२६ अ। अपूर्वकरण (प्ररूपणा)-बन्ध ३६७, बन्धक ३ १७६ अ, अप्रतिष्ठान-११२६ अ। बन्धस्थान ३ ११० ३ १११, प्रदेशनिर्जरा का अल्प- अप्रतिष्ठित-११२६ अ। बहत्व ११७४, उदय १३७५ ब, उदयस्थान अप्रतिष्ठित प्रत्येक बनस्पति-निर्देश ३५०६ ब, जीव. १.३६२ अ, उदीरणा १.४११, उदीरणा स्थान समास २ ३४३, आयु १.२६४ अ। प्ररूपणा-बन्ध १.४१२, सत्त्व ४२७८, सत्वस्थान ४ २८६, ४.३०४, ३१०४, बन्धस्थान ३११३, उदय १३७६, उदयत्रिसयोगी भंग १४०६अ। सत ४१६३, सख्या ४.६४, स्थान १.३६२ ब, उदीरणा १.४११ उदीरणा स्थान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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