Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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अपदेश
अपवर्तना पात
३४८३, ३ ४८५, ३४८६ अकन ३ ४४४ ।
निर्देश ३४७६ अ, ब, अकन ३ ४६८ । नन्दीश्वर दीप अपदेश-१११८ ब।
वापी-निर्देश ३४६३ ब, नामनिर्देश ३४७५ अ, अपध्यान-१११८ ब।
विस्तार ३४६१ अंकन ३४६५ । विदेहनगरीअपमण्डल-धारणा २३२४ ब, लोक ३४३४ अ ।
निर्देश ३ ४६० अ, नामनिर्देश ३४७० ब, विस्तार अपमण्डल यन्त्र-३ ३५३ ।
३ ४७६, ३४८०, ३४८१, अकन ३४४४, ३४६४
के सामने, चित्र ३ ४६० अ । अपमान-निन्दा २५८८ अ, मार्दव ३२६८ ब,
अपराजिता (नाम)--१ ११६ अ, तीर्थकर मुनिसुव्रतनाथ ३२६६अ।
२३७६, बलदेव ४१७ ब, रघुवश १३३८ अ । अपमृत्यु-आयु का अपवर्तन १२६१ अ, कषाय २ ३५ अ,
अपराल-१११६ अ। मरण ३२८४ अ।
अपराध---१.११६ अ, चारित्र २२८८ ब, धर्म २४७० अ, अपर-परत्वापरत्व ३१२ अ, परम ३१३ अ।
राग ३५५८ ब। अपरत्व-काल २८३ अ, परत्वापरत्व ३१२ अ।
अपरिगहीता-१११६ अ। अपरम-परम ३१२ ब ।
अपरिग्रह-अहिसा १२१७ अ। विशेष दे० परिग्रहअपर विदेह-१११८ ब, निषध व नील पर्वत का कूटनिर्देश ३४७२ अ, विस्तार ३४८३,३४८५, ३४८६,
त्याग । अकन ३४४४ । गजदन्त का कूट-निर्देश ३४७३ अ,
अपरिणत---१११६ अ, आहारदोष १२६१ ब । विस्तार ३४८३, ३४८५, ३४८६, अकन ३ ४४४ ।
अपरिमित ज्ञान-केवलज्ञान २१४६ ब । विदेहक्षेत्र का पश्चिम भाग-निर्देश ३ ४४६ ब,
अपरिवर्तमान परिणाम-परिणाम ३ ३१ ब । विस्तार ३४७६, ३.४८०, ३४८१, अकन ३४४४, अपरिशेष प्रत्याख्यान-प्रत्याख्यान ३१३१ ब । ३ ४६४ के सामने, इसके १६ देश व नगरियाँ अपरिस्पन्दात्मक पर्याय-पर्याय ३४७ अ । ३४६० अ, ३ ४७० ब।
अपरित्रविता--१११६ अ। अपर व्यवहार--१११८ ब ।
अपरीत वर्गणा-वर्गणा ३५१४ ब । अपर संग्रह-१११८ ब, नय २५३४ अ ।
अपर्याप्त-अवधिज्ञान ११६५ ब, आयु १२६४ अ, अपर संग्रहाभास-नय २५३४ ब ।
आहारक काययोग १२६८ अ, काय २४४, कार्मणअपर सामान्य--सामान्य ४४१२ अ।
काययोग २७६ ब, केवली २१६८ अ, जीवसमास अपराजित-१११८ ब। आचार्य-मूलसघ (अगधर)
२३४३, तिर्यचगति २३६७, नरक गति २५७५ अ, १३१६ । इतिहास-प्रथम १३२८ अ, द्वितीय
निगोद ३५१०, पर्याप्ति ३४० ब, प्राण ३ १५३ ब, १३२६ अ, तृतीय १३२६ ब, १३४१ ब । कूट
मन ३ ३८० अ, मनुष्य गति ३ २७३, वचनयोग रुचकवर पर्वत का कट-निर्देश ३४७६ अ, विस्तार
३३८० अ, सयम १२९८ ब, सहनानी २२१६अ। ३ ४८७, अंकन ३४६८ । जगती-जम्बूद्वीप की अपर्याप्त काल-३ ४२५ अ, विशुद्धि ३ ५७० । जगती का द्वार-निर्देश ३४४४ ब, विस्तार ३४८४,
विस्तार
अपर्याप्तनाम-कर्मप्रकृति--प्ररूपणा-प्रकृति ३८८, अकन ३४४४, रक्षक देव ३६१३ । नाम-गणधर
२५८३, स्थिति ४४६६, अनुभाग १६५ ब, प्रदेश २१२२ ब, ग्रह २२७४ अ, तीर्थंकर पद्मप्रभ व
३१३७। बन्ध ३६७, बन्धस्थान ३११०, उदय सुपार्श्वनाथ २३७८, बलदेव ४१८ अ, विद्याधर
१३७५ अ, उदयस्थान १३६०, उदीरणा १४११ अ, नगरी ३ ५४५ अ, हरिवंश १३४० अ ।
सत्त्व ४२७८ सत्त्वस्थान ४३०३, त्रिसयोगी भग अपराजित संघ-१११६ अ!
१४०४, सक्रमण ४८५ अ । अल्पबहुत्व ११६८। अपराजित (स्वर्ग)-अनुत्तर विमान-निर्देश ४५१६ अ. अपर्याप्त योग-३६०४ अ।
विमान ४५१४ ब,श्रेणीबद्ध ४५१८, अकन ४५१७, अपर्याप्ति--३४० ब। कल्पातीत ४५१०। इस विमान के देव-निर्देश अपवर्ग-१११६ब, नैयायिक दर्शन २६३३ ब । ४५१० ब, अवगाहना ११८१ अ, अवधिज्ञान अपवर्तन-१११६ ब, आयु १२६१ अ, अल्पबहुत्व ११६८ ब, आयु १२६६, आयुबन्ध के योग्य परि- ११६०, कदलीघात ३२८५ब, घात १११७ब। णाम १२५८ अ।
अपवर्तना घात-अपवर्तन १.११६ ब, काण्डकघात अपराजिता-१.१११ अ । दिक्कुमारी (रुचक पर्वत)
मारा (रुचक पवत)- १११७ ब।
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