Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 20
________________ अनुभवागत सन्धिस्थान ४१०२, क्षेत्र २२०२, स्पर्शन ४४६५, काल २.१०८, अन्तर ११२, भाव ३२२० व अल्प १.१४ ॥ अनुभवागत लब्धिस्थान -लब्धि ३४१४ व । अनुभव - १८० अ, अनुप्रेक्षा १७२ व अनुभाग १.८८ व आत्मानुभव १८२ १८४६८१ उदय १३६५, उदीरणा १४१० अ चेतना २.२१६ व दर्शन २४०६ ब, प्रमाण ( अनुभव ) १८२ अ-ब, मिथ्या दृष्टि ३३०५ अ विपाक २.५५६ अ अनुभव प्रकाश - १.८७ अ । अनुभाग--- १.८७ अ अनुभव १.८८ ब अल्पबहुत्व १.१६५ - १७१ अ अविभाग प्रतिच्छेद १२०३ अ आयु कर्म १२६१ अ कर्म १३५० कृष्ण (वगणा) २.१४० व निर्जरा २.६२२ अ, विपरिणमना ३.५५५ च । अनुभाग उदय -- अल्पबहुत्व १.१७६, उदय १.३८६, कारण (जीव परिणाम ) २६७ व अनुभाग काण्डक --- अन्तरकरण १२६ ब १. ११७ अ, काण्डक ( कण्डकोत्करण काल ) अनुभाग घात - अपकर्षक १११७, आयु का १२६१ ब स्थिति पात (अपकर्षण) १११७ । अनुभागबंध अध्यवसाय स्थान १.५२ अ, ४.११६ व अनुभागबन्ध १६० अ १.९४-९५, प्रकृतिबन्ध ३९३ अ प्रधानता (स्थिति) ४.४५७ व वन्धप्रत्यय ३१३० व बन्धवेदना का अल्पवत् १.१६५ व १.१७६, स्थितिबन्ध ४४६९ । अनुभाग सत्त्व - अल्पबहुत्व १.१६५ ब, ११७४ चौंसठ स्थानीय अल्लवत्व समुत्कीर्तना ४.३११ । १.३६५ व, २७२ अ । अपकर्षण अनुभूत्यावरण- १. ८४ ब । अनुमति - १.९५ अ 1 अनुमति-त्याग प्रतिमा - अनुमति १.१६ अ । २.४२ अ अपवर्तन अनुभाग स्थान- अध्यवसाय १५३ व ४.११६, अनुभाग १८ अ स्थान ४४५२ ब स्पर्धक ४८४७२ ब । अनुभाग स्वामित्व सन्निकर्षसत् १.९५, ३. ११४, ४३१०, ४५२७-५२९ सख्या ४.११७, क्षेत्र २२०८, स्पर्शन ४४९४, काल २१२१-१२१ अन्तर १२२, भाव ३ ३१३, अल्पबहुत्व ११७५, ४.४६६, ४.५२७, भागाभाग ३.२१५, ४.११६ । Jain Education International ११६६ अ, १.१६६ अ अनुभाषण -- १.६५ अ । अनुभाषणा शुद्ध प्रत्याख्यान -- प्रत्याख्यान ३.१३२ अ । अनुभूति - अनुभव १.८१-८६ ब उपलब्धि १०.४३५ अ, सम्यग्दर्शन ४३५३ व १८ अनुमान - १९६अ, अनि सूत मतिज्ञान ३२५६ व अर्थ लिगज श्रुतज्ञान ४५१ हा ज्ञान १३५२ अ, केवलज्ञान २.१५० ब प्रमाण ( अनुमान) ११८ अ मतिज्ञान ३.२५४ ब, ३.२५६ ब, लिंग ( सम्यग्दर्शन) ४३५१ व सोपाधिक अनुमान (उपाधि) १४४४ । अनुमान बाधित बाधित ३१८२ व । अनुमानित - १६६ अ, आलोचना १.२७७ ब । अनुमेयता-तम्यग्दर्शन ४,३५२ अ । अनुमोदक अनुमति १.९६ अ अनुयोग -- १६६ अ । । । ब अनयोगटार अनुयोग १.१०१ श्रुतज्ञान ४६४ व । अनुयोगद्वार समास - श्रुतज्ञान ४८.६४ । अनुयोग समास १.१०३ ब । अनुयोगी - १.१०४ अ अनुराग - आकाक्षा (वात्सल्य ) ३.५३२ ब ३.५.३२ ब उपलब्धि १.४३५ अ, प्रववनवात्सल्य ३५३२ ब. राग - ३.३१५ अ, वात्सल्य ३.५३३ अ । - अनुराधा - १.१०४ अ तीर्थंकर २.५०४ व । अनक अनुरुद्ध - १.३१२, १.३१३ । अनुलोम- १.१०४ अ । अनुवाद - १.१०४ ब । २.३८१, नक्षत्र अनुवाद वाक्यवाक्य ३.५३१ अ अनुवीचि भाषण- ११०४ अ । अनुवृत्ति - ११०४ अ । अनुशिष्ट--- ११०४ अ । अनुशिष्टि - सल्लेखना ४.३१० ब । अनुश्रेणी --- १.१०४ अ विग्रह्णति ३.५४० अ । अनुष्ठान - भक्ति ३ १९८ ब । अनुसमयापवर्तना- १.१०४ अ अपकर्षण अपवर्तन । - For Private & Personal Use Only घात १११६ ब, अनुभागकाण्डक घात १ ११७ व । अनुसारी ऋद्धि ऋद्धि १४४५ १.४४९ व । अनुसूर्य तप-कायले २४७ अ । अनुस्मरण --- १.१०४अ स्मृत्यन्तराधान ४४६५ ब । अन्जु - उत्तरप्रतिपत्ति १.३५६ अ ऋजुमतिमन:पर्यय ३ २६४ अ । 1 अनूत वचन --असत्य १.२०८ अ । अनेक ११०४ अ, अनेक अजीव अनुयोगद्वार १.१०२ अ अनेक अजीव कर्म व कषाय २२६ अ, २.३५ व अनेक क्षेत्र अवधिज्ञान १.१५० ब अनेक गृहभोजी क्षुल्लक २१५१ व अनेक जीव अनुयोगद्वार ११०२ अ अनेक जीव कर्म व कषाय २२६ अ, www.jainelibrary.org

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