Book Title: Jainendra Siddhanta kosha Part 5
Author(s): Jinendra Varni
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 19
________________ अनीहार अनुभय मन-वचन-योग २.५२३ ब। अनुत्पन्न देव-व्यन्तर जातीय देव-आयु १२६४ ब । अनीहार-४३६० अ। अनुत्पादानुच्छेद-उत्पादादि, १३६१ अ, व्युच्छित्ति अनु-१.६८ ब । ३६१६ अ। अनुकंपा-१६६ अ, अहिसा १२१७ ब, करुणा २.१४ ब, अनुत्सपिणी सिद्ध-अल्पबहुत्व ११५३ ब । __ शुभोपयोग १४३४ ब, मिथ्यादृष्टि ३.३०५ अ अनत्सेक -१७० ब। सम्यग्दर्शन ४.३५१ अ। अनदय-उपशम १४३७ अ, कारण २६८ ब । अनुकृति-१.७० अ। अनदिश देव-निर्देश ४ ५१० अ, अवगाहना ११८१ अ, अनुकृष्टि-१.७० अ, गणित २२३१ ब, निर्वर्गण अवधिज्ञान ११६८ ब, आयु १२६६, आयुबन्ध के २.६२६ अ। योग्य परिणाम १.२५८ ब । प्ररूपणा-बन्ध ३१०२, अनुकृष्टि गच्छ-१.७० अ, २.२३२ अ। बन्धस्थान ३११३, उदय १३७८, उदयस्थान अनुकृष्टि चय-१७० अ, २ २३२ अ । १३६२ ब, उदीरणा १४११, सत्त्व ४२८२, सत्त्व अनुक्त-१.७० अ, ज्ञान ३२५७ अ, प्राप्यकारी स्थान ४२६८, ४३०५, त्रिसयोगी भग १४०६ ब । १.३०४ ब । सत् ४१६२, सख्या ४६८, क्षेत्र २२००, स्पर्शन अनुक्रम-२.१७१ ब । ४४८१, काल २१०४, अन्तर ११०, भाव अनुगताकार -बुद्धि १११२ ब । ३२२० ब, अलगबहुत्व ११४५ । अनुगम-१७० अ । अविभ्राड्भाव सम्बन्ध १.७० ब। अनदिश स्वर्ग-निर्देश ४५१४ अ, ४५१६ अ, पटल अनुगामी-१.७० ब, अवधिज्ञान १.१८८ अ-ब, इन्द्रक व श्रेणीबद्ध ४५१८, ४५२०, विस्तार ४५१८, अकन ४५१५, ४५१७, कल्पातीत ११६३ ब। अनुज्ञा-४३६१ब। ४५१० अ, ४५१४ ब। अनुग्रह-१७० ब, उपकार १.४१५ ब, स्थितिकरण । अनुदीर्ण-उपशम १४३७ अ । ४४७० ब । अनुपक्रम काल-२८१ अ। अनुजीवी गुण-द्रव्य २.२४३ ब। अनुपचरित--सापेक्ष धर्म-अनेकान्त १०६ अ, सप्तभगी अनुत्कृष्ट-अनुभाग १८६ अ, पद ११०२ ब, १०३ ब, ४३२३ ब। विभक्ति ११०३ ब, स्थिति ४४५६ ब । अनुपचरित असद्भूत नय-नय २५६१ ब। अनुत्तर-१.७० ब, राक्षसवश १३३८ अ, श्रुतज्ञान अनुपचरित नय--नय २.५६० अ। ४६० अ । विमान ४१६ ब । अनुपम-गणधर २.२१३ अ। अनत्तर देव-निर्देश ४५१० अ, अवगाहना ११८१ अ, अनुपमा- १७१ अ। अवधिज्ञान ११६८ ब्र. आयु १२६६, आयुबन्ध के अनुपमान- चक्रवर्ती की विभूति ४१५ अ। योग्य परिणाम १२५८ ब । प्ररूपणा-बन्ध ३.१०२, अनुपलब्धि (हेतु)-हेतु ४.५३६ ब। बन्धस्थान ३११३, उदय १.३७८, उदयस्थान अनुपसंहारी हेत्वाभास-१.७१ अ। १३९२, उदीरणा १.४११, सत्त्व ४.२८२, सत्त्वस्थान अनुपस्थापन-परिहार प्रायश्चित्त ३ ३५ ब । ४२६८,४३०५, त्रिसयोगी भग १४०६ ब । सत अनपहारक-परिहार प्रायश्चित्त ३.३६ ब। ४१६२, सख्या ४.६८, क्षेत्र २.२००, स्पर्शन ४.४८१ अनुपाख्यनि:स्वभाव--स्याद्वाद ४.४६६अ। काल २१०४, अन्तर ११०, भाव ३.२२० ब, अनपात्त-१७१ अ। अल्पबहुत्व ११४५ । अनुपालना शुद्ध प्रत्याख्यान-प्रत्याख्यान ३.१३२ अ। अनुत्तर स्वर्ग-१७० ब, ४१६ ब। स्वर्ग-निदेश, अनप्रेक्षणा-उपयोग १४२६ ब। ४५१६ अ, पचविमान ४.५१४ ब, पटल इन्द्रक व अनप्रेक्षा-१.७१ अ, उपयोग १४३४ ब, ध्यान २४८२ अ। श्रेणीबद्ध ४५१८-५२०, अवस्थान ४.५१४ ब, अनुभय असत्य-योग ३.३८० ब। अकन ४५१५, ४.५१७, कल्पातीत ४.५१० अ। अनुभय मन-वचन-योग-प्ररूपणा-बन्ध ३१०४, बन्ध अनुत्तरोपपादक-१७०ब। स्थान ३११३, उदय १.३७६, उदयस्थान १३९२ ब, अनुत्तरोपपादक दशांग--१.७० ब, श्रुतज्ञान ४.६८ अ। सत्त्व ४,२८३, सत्त्वस्थान ४२६६, ४३०५, अनुत्पत्ति समा जाति--१.७० ब । त्रिसंयोगी भंग १४०६ ब । सत् ४.२१३-२१४, सख्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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