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जैनत्व जागरण......
केवलज्ञान द्वारा सर्वव्यापी सर्वज्ञाता परमकल्याण रूप शिव वृषभ ऋषभदेव जिनेश्वर मनोहर कैलाश अष्टापद पर्वत पर पधारे । तिब्बती भाषा में लिंग का अर्थ क्षेत्र होता है ।
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It may be mentioned that linga is a Tibetan word of land (S.K. Roy Historic Indian Ancient egypt, Pg. 28).
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तिब्बती लोग इस पर्वत को पवित्र मानकर अति श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं तथा इसे बुद्ध का निर्वाण क्षेत्र कागरिक पौंच कहते हैं । यहाँ बुद्ध का अर्थ अर्हत् से है जो बुद्ध अर्थात् ज्ञानी थे । श्री ऋषभदेव ने माघ कृष्णा त्रयोदशी की रात्रि को कैलाश पर्वत पर निर्वाण प्राप्त किया था । आज भी इसी रात्रि को प्रभु ऋषभदेव के निर्वाण कल्याणक की पूजा के प्रतीक के रूप में महाशिवरात्रि का पर्व मनाया जाता है ।
शिवलिंग का अर्थ मुक्त क्षेत्र अर्थात् मोक्ष क्षेत्र होता है। शिव भक्त लिंग पूजा करते हैं जो प्राचीनकाल में भी प्रचलित था ।
In fact shiva and the worship of linga and other features of Popular Hinduism were well established in India long before the Aryans came (K.M. Pannekar A survey of Indian History, Pg. 4)
बाद में तांत्रिकों ने इसका अर्थ शिव ऋषभ के चरित्र अर्हत धर्म के विपरीत बनाकर विकृत कर दिया । लिंग का अर्थ क्षेत्र के रूप में न रहकर पुरुष जननेन्द्रिय के अर्थ में लिया जाने लगा । इस पर्वत पर तपस्या के फलस्वरुप प्राप्त आत्मसिद्धि को पार्वती नाम से एक स्वतन्त्र स्त्री के व्यक्तित्व का रुप दे दिया और उस स्त्री की जननेन्द्रिय में पुरूष जननेन्द्रिय को स्थापित कर इस नयी आकृति को शिवलिंग कहने लगे । इस बात को उस समय के अशिक्षित और अज्ञानी लोगों ने आसानी से ग्रहण कर ली । आवश्यक शास्त्र में महेश्वर और उमा के उपाख्यान से ग्रहण कर ली । आवश्यक शास्त्र में महेश्वर और उमा के उपाख्यान से इस बात की पुष्टि होती है । आत्मसिद्धि रूप द्वादशांग वाणी से प्राप्त गणपति ( गणधर ) तथा षण्मुख (षडद्रव्यात्मक) रुप को क्रमशः हाथी की सूंड वाले लम्बोदर गणेश तथा