________________
जैनत्व जागरण..
२४६
के किनारे स्थित है । वेगलर ने १८७२-७३ में यहाँ का परिदर्शन किया तथा अपनी रिपोर्ट में यहाँ के सोलह जैन मंदिरों का वर्णन किया है। जिसकी शिल्प के विषय में वैगलर ने इनकी तुलना खजुराओ और उदयपुर के मंदिरों से की है ।
बोरम : ये कंसावती नदी के दक्षिण किनारे पर स्थित है । यहाँ जैन मंदिरों के अनगिनत खंडहर देखने को मिलेगें । यहाँ की मूर्तियों की साम्यता मिस्त्र की मूर्तियों से की जा सकती है ।
भवानीपुर : पुरुलिया से कुछ दूर और कच्चा गाँव के पास इस गाँव में ऋषभनाथ और पद्मावती - धरणेन्द्र की मूर्तियाँ पायी गयी है । चांदी : सुवर्ण रेखा नदी के पुल के पास एक मंदिर के अवशेष दिखाई देते हैं ।
चन्दन क्यारी : पुरुलिया के कुछ मील दूर पर स्थित इस क्षेत्र में अनेकानेक जैन मूर्तियाँ पायी गयी है । इसके पास ही कुम्हारी और कुमार डागा में भी प्राचीन जैन मूर्तियाँ मिली है ।
छड़रा : पुरुलिया से ४ मील दूर कसाई नदी पर बराकर जाने वाले रास्ते पर अवस्थित है | १८७२-७३ में जब वेगलर यहाँ आया तो उसने बहुत सारे विस्तृत शिल्पकला युक्त जैन मंदिर, मूर्तियाँ देखे थे । जिले के गेजेटियर में सात मंदिर यहाँ थे इसका वर्णन है । आरडी वनर्जी द्वारा पाँच मन्दिर देखे गये थे । पाँच बड़ी तीर्थंकर मूर्तियाँ यहाँ से निकली है । यहाँ दो मील दूर गोलामारा में भी जैन निदर्शन पाये गये हैं ।
1
I
इसी प्रकार देउलभिरा, दुलमी, देवली, देवली, गुहियापाल, इच्छागढ़, पाटकू, पवनपुर, पकवीरा, पटमदा, सुइसा, रालीबेरा, तुइसामा आदि अनेक क्षेत्रों में जैन निदर्शन बिखरे पड़े हुए है । जिनमें से अनेक जल में समा गये है या फिर गायब कर दिये गये । आज भी अगर वहाँ जाए तो गाँव के बीच में, चौराहों में, पेड़ों के नीचे, खुले रास्ते पर, धने जंगलों के बीच जैन निदर्शन अवहेलित पड़े देखने को मिलेगे । एक एक स्थान पर तो भग्न और जीर्ण जैन मंदिरों की ईंटों से गाँव के मकानों को निर्मित किया