________________
जैनत्व जागरण.......
२४९
I
ये पुरातात्विक अवशेष गवाह है हमारे पूर्वजों की अनुपम शिल्प निर्माण दक्षता के, जिन्होंने अपनी निपुणता से गढ़ा था उन सर्वज्ञ महापुरुषों की वीतरागी मुद्रा को, जीवन्त कर दिया था अध्यात्मिक पराकाष्ठा के इन योगियों को । इन अमूल्य निदर्शनों को आज प्रकृति ने नहीं डंसा है, डंसा है उन्हीं मनुष्यों के उत्तराधिकारियों ने अपने निष्ठुर क्रिया कलापों से, विद्वेष की भावना से और डंसा है परस्पर अन्तःकलह ने । क्या २६०० साल पहले हमारे भीतर कोई भेद थे । तो अपने पूर्वजों की विरासत को संरक्षित रखने में भेद-भाव क्यों ? एकता का अभाव हमें कमजोर बना गया है। धन का अभाव कारण नहीं हमारी मानसिक विकृत्तियों का है । नित्य नये नये मंदिर और नई नई मूर्तियों का निर्माण हो रहा है । क्या उनका भविष्य भी इसी प्रकार नहीं होगा ? यदि हम एकजुट होकर अपनी ऐतिहासिक विरासत को संरक्षण दे तो `राज्य सरकार, भारत सरकार, यदि अनसुनी भी करे तो वर्ल्ड हेरिटेज में जा सकते हैं । १६वीं, १७वीं और १८वीं सदी की इमारते वर्ल्ड हेरिटेज के अन्तर्गत संरक्षित है तो यह तो अत्यन्त पुरानी संपदा है पर जरुरत है एक बुलन्द आवाज की । ये प्राचीन मूल्यवान धरोहरे हमें पुकार रही है और हमं मूकबधिर बने तमाशा देख रहे हैं । निष्क्रिय है हमारा समाज जो देखकर भी अनदेखी करते हैं । अभी भी समय है, हमें चेतना होगा ताकि बची हुई विरासत को सहेज सके। जिन तीर्थंकरों की पूजा, वंदना और अर्चना हम करते हैं जिनके उपदेशों को हम सुनते हैं, जिनके दिखाये हुए पथ पर चलना चाहते हैं उन अहिंसा के पुजारियों के समक्ष दी जा रही हिंसक बलि भी हमारे मन मस्तिष्क के कपाट नहीं खोल पा रही है क्या कारण है। यह बहुत ज्वलन्त प्रश्न है जिसका जबाव हमें अपने इतिहास में से ही खोजना पड़ेगा ।
आज जो समृद्धवान है और जो प्राचीन समय में समृद्धवान थे उनकी मानसिकता में भी गहरा अन्तर स्पष्ट दिखायी पड़ता है । यह सर्वविदित है कि बंगाल और बिहार प्राचीन समय से अत्यन्त समद्धशाली क्षेत्र थे जिसका प्रमुख कारण श्रमण संस्कृति का प्रभाव था । जैनेत्तर ग्रन्थों में इन क्षेत्रों में ब्राह्मणों का जाना वर्जित था । ऋग्वेद में भी इन क्षेत्रों की समृद्धि का