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जैनत्व जागरण.....
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१/६ अभय प्रदान करता हुआ है । वह मूर्ति वस्त्र से ढंकी हुई है ।
उसके गले में उपवीत (जनेऊ) और अलंकार है । नीचे बाई तरफ वीणा हाथ में लिए सरस्वती की मूर्ति है और दक्षिण में लगता है देवी लक्ष्मी की मूर्ति है । इन दोनों मूर्तियोंकी निर्माण शैली आसाधारण है । हो सकता है कि ये राजा रूद्रशिखर द्वारा निर्मित मूर्तियां हो-लेकिन जोर डालकर कहना मुश्किल है । मूर्ति के सिर पर मुकुट और कानों में कुंडल के सिवाय उस घर में ४ शिवलिंग और एक छोटी सी मूर्ति देखी जा सकती
गुरुडी के करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर लालपुर गाँव बसा है। इस गाँव के अन्तिम छोर पर बिजली की चोट खाए एक विशाल वटवृक्ष के नीचे सम्पूर्ण अनहेलित स्थिति में कुछ दुर्लभ जैन मूर्तियां पड़ी हुई है।
१. अम्बिका देवी मूर्ति : यह मूर्ति भगवान नेमिनाथ की अधिष्टायिक अम्बिका की है। इस पर किये गये अलंकार देखने लायक है । मूर्ति का चेहरा नष्ट हो चुका है। ऊँचाई लगभग ७ फुट है। मिट्टी के नीचे करीब ११/२ फुट धंसी हुई इस मूर्ति को तेलकूपी के जल से लोग उठाकर लाये हो । __इसका दाहिना हाथ पूरा टूट चुका है। एवं बाएं हाथ से एक शिशु को पकड़ा हुआ है जो देवी अम्बिका के आयुष्य हैं । वात्सल्य प्रेम का यह अनुपम उदाहरण है। मूर्ति अपने मूल रूप में अति मनोहर थी। इसका प्रमाण उसके बालों की बनावट, गले का हार और कानों का कुण्डल देखने से ही मिलता है । इसके अलावे, दोनों हाथों पर बाजूबन्द बनाए गए हैं। मूर्ति के ऊपर का अंश बिलकुल नष्ट हो चुका है। ऊपर से नीचे की तरफ देखते हुए पहले हमें नृत्य करती एक नारीमूर्ति और वाद्य बजाते हुए एक पुरुष मूर्ति नजर आती है । इस एक ही भंगिमा में बने बाई तरफ भी दिखाई देती है। ठीक उसके नीचे चामर डोलते हुए दो स्त्रियों की मूर्ति और उसके नीचे दाहिनी तरफ चामर धारी एक नारी मूर्ति । मूर्ति अलंकारों और वस्त्र से सुसज्जित है।