Book Title: Jainatva Jagaran
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

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Page 293
________________ जैनत्व जागरण..... २९१ के लोगों के अनुसार जो मूर्तियाँ देवालय में थी, वे अनादर एवं आशातना से उत्पीड़ित हो रही थी। उनकी पूजा अर्चना नहीं होती थी । इस पर चोरबाजारूओं का हंगामा, मूर्ति, चुरानेकी कोशिश आदि बातों से परेशान गाँव वालों ने पास की पोखरी में सारी मूर्तियों को डाल दिया है । कईयों का मानना है कि स्थानीय चेलियामा गाँव के महामाया मंदिर में मूर्तियों को लाकर रखा गया है । यह ग्राम्य देवी का मंदिर है जो प्राचीन 'हो' जाति के लोगों द्वारा प्रतिष्ठित है । 'हो' की कुलदेवी महामाया थी। इस समय चेलिया में 'हो' जाति के लोग नहीं रहते पर उनके दिये गये नाम यथावत् रह गये हैं । यहाँ की पोखरियों के नामों के साथ 'हो' प्रयत्न युक्त हो चुका है जैसे- चाँदाहो, रावाहो, गवाहो, या राहो, कुयारी धहो, गलहो आदि । इस जाति का संधान हमें रांची और हजारीबाग जिलों में मिलता है । आज भी ये लोग अपने दिवंगत लोगों के अस्थि-विसर्जन करने के लिए हर साल तेलकूपी या करगाली के दामोदर घाट में आते है । दामोदर को वे गंगा के समान पवित्र मानते है जो भी हो-इस समय चेलियामा के महामाया मंदिर में एक सीमेंट से बने बंदी में जो मूर्तियाँ देखने को मिलती है, वे हैं .ऋषभदेव : यह मति खंडित है। सिर्फ सिर का अंश ही बचा हुआ है । फि भी मस्तक का आकार और आयतन देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि यह लगभग ४ फुट ऊँची मूर्ति रही होगी, जो कायोत्सर्ग मुद्रा में खड़ी रही होगी। दोनों तरफ तीर्थंकर की मूर्तियाँ खुदी हुई थी। पर आज सबकुछ नष्ट हो चुका है। ऋषभदेव प्रभु के खंडित मस्तक के साथ आभामंडल बना हुआ है। यह मूर्ति जनता की आँखों में शिव मूर्ति के रूप में ही परिचित है और हर दिन उसी प्रकार जलप्रवाह के साथ इसकी पूजा भी होती है। हो सकता है कि यही मूर्ति बान्दा के देवालयों में वेदी पर प्रतिष्ठित रही हो । • गजारूढ़ा : यह आकृति में छोटी है और हाथी पर आसीन है। मूर्ति लगभग नष्ट हो चुकी है, अनुशीलन से यह अजितनाथ की शासनदेवी ज्ञान होती है । बान्दा के देवालय में अजितनाथ की मूर्ति प्रतिष्ठित रही होगी।

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