Book Title: Jainatva Jagaran
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

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Page 324
________________ प्रतापीपूर्वज कच्छ-मांडवी निवासी... कच्छी विशा ओसवाल ज्ञातिय... शेठ श्रीमानसंग भोजराजजी द्वारा हुए सत्कार्य. विक्रम संवत 1901, में प.पू.आ.रत्नसागरजी म.सा. का प्रेरणा से गिरनार मध्ये शेठ मानसंग भोजराज टोंक का निर्माण व शेठ मानसंग भोजराज धर्मशाळा का निर्माण (जो अभी दीगंबर जैनों के हाथ में है) जूनागढ़ गाँव में जिनमन्दिर का निर्माण व अंजनशलाका प्रतिष्ठा (गिरनार पर शेठमानसंग भोजराज टोक उपर सभी जिनबिम्बो की अंजन-प्रतिष्ठा जुनागढ गाँव में हुई थी) (प्रे.पू.आ. रत्नसागरजी म.सा.) (वि.सं.१९०१) - गिरनार से गोडी थार (थरपारकर-सींध, हाल पाकिस्तान) का भव्य संघ (वि.सं.१९०२) - देरानवाब (सींध) में प्रतिष्ठा (प्रे.पू.आ. जिनरत्नसूरिजी म.सा.) (वि.सं.१९०४)। - धराकी (सीध) अंजन-प्रतिष्ठा (प्रे. पू.आ. जिनरत्नसूरिजी म.सा.) (वि.सं.१९०४) - गुंजरावाला (यति की बडी पोशाल) प्रतिष्ठा (प्रे. पू.आ. जिनरत्नसूरिजी म.सा.) (वि.सं.१९०६) - कराची मन्दिर का निर्माण तथा प्रतिष्ठा (प्रे.पू.आ. रत्नसागरजी म.सा.) (वि.सं.१९०७) / - क्वेटा मन्दिर में प्रतिष्ठा (प्रे. पू.आ. जिनरत्नसूरिजी म.सा.) (वि.सं.१९०९) - गिरनार में जिनालय के गुप्तखंड में विशेष रत्नमन्दिर का निर्माण (2020 में व्यवस्था के कारणवश यह मन्दिर अन्यत्र सीफ्ट कीया गया है) (वि.सं.१९१०) - अजिमगंज में अंजनशलाका-प्रतिष्ठा (प्रे. पू.आ. जिनरत्नसूरिजी म.सा.) (वि.सं.१९१९) - जगतशेठ परिवार की मैत्री से सम्मेदशिखर, राजगिर, चंपापुरी, मुर्शिदाबाद में प्रतिष्ठा का लाभ मिला (वि.सं.१९१९) - जेसलमेर में जिनबिंब की प्रतिष्ठा (प्रे. पू.आ. जिनरत्नसूरिजी म.सा.) (वि.सं.१९२३) - लाहोर-पठानकोट में प्रतिष्ठा (प्रे. पू.आ. जिनरत्नसूरिजी म.सा.) (वि.सं.१९२५)। - सिद्धाचल तीर्थ पर 11 जिनबिंबो की प्रतिष्ठा (प्रे. पू.आ. रत्नसागरजी म.सा.) (वि.सं.१९२९) - गुजरांवाला बडी पोशाल का निर्माण (वि.सं.१९२६) (जहाँ पू.आत्मारामजी म.सा. का कालधर्म हुआ) - रावलपींडी में ज्ञानभंडार का निर्माण, पादुका की प्रतिष्ठा (प्रे. पू.आ. जिनरत्नसूरिजी म.सा.) (वि.सं. 1926) - 300 लहीआओ को रोजी देकर सुंदर साहित्य का लेखन, पू.आ.जिनरत्नसूरिजी म.सा. के पास करीब - 14,000 प्रतें लीखवाई जो रावलपीडी के ज्ञानमन्दिर में रखींहुई थी / (अभी लाहोर के म्युझीयम में सभी प्रते सुरक्षीत है) / - पू.आ. जिनरत्नसूरिजी म.सा. की महत्तम कृपा रही और प.पू.आ.रत्नसागरजी म.सा. का सदा साथ रहा [ आधार :- पू.आ. जिनरत्नसूरिजी म.सा. का रास, सींधतीर्थयात्रासंग्रह, कच्छी विशा ओसवाल वंशवेला, उज्जयंतगिरि-गिरनार तीर्थ (शेठ आणंदजी कल्याणजी पेढी द्वारा प्रकाशित), वंशसूचि पारिवारिक नोंध, प्राप्त हस्तपते व टब्बे, गिरनार तीर्थ, जैन तीर्थ सर्व संग्रह (भाग-१,२,३)]

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