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जैनत्व जागरण......
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है । बाड़ या बीच के अंश के तीन प्रधान खंड़ होते हैं । ये हैं-पा, जांघ और बरओ । जांघ के बीच कभी कभी उभरी हुई रेखाएं नजर आती है। इन्हें बन्धना कहते हैं | रेख शैली के देवालय की सुन्दरता उसका घेरा हुआ अंश है । मानभूम के देवालयों में घेरवाले अंश में कलाकारों ने छोटे देवालय, चैत्य, फूल, पशु-पक्षियों के चित्रों का सृजन किया है। कलाकार की कल्पना, इन अंशों में जीवंत हो उठी है । पुरुलिया के सभी देवालयों में पाड़ा का देवालय अपने घेरयुक्त अंश की कलाकारी के लिए सबसे अधिक चर्चित है । यहाँ दूसरे दृश्यों के साथ साथ पत्थर पर खुदे हुए नृत्यरता रमणी, प्रसाधन में व्यस्त नारी, इन्तजार करती नारी आदि विभिन्न दृश्य है, जिसका. आज बहुत कम ही बचा रहा गया है । बाकी सारी कलाकारी समय की निर्मम चपेट, धूप, बरसात में, बिना देखरेख के नष्ट हो चुका है । रेख देवालय का मशुक नाम का अंश भी चार भागों में विभक्त है बेंकी, आमलक, कलम और ध्वजदंड | पुरुलिया के बहुत पुराने कुछ एक देवालय, जो आज भी हजारों बाधा के बाद भी टिके हुए हैं; उनके बेंकीवाले अंश को ध्यान से देखने पर पता चलेगा कि वह अंश कहीं सीधा उठ गया है ऊपर की तरफ या फिर कहीं कलश की तरह टेढ़ा है । ज्यादातर क्षेत्रों में आमलक अंश दिखने में कमल जैसा होता था । चार-पाँच बड़े खंड़ों को काटकर ऊपर बिठाया गया है जिससे ऐसा लगे कि ऊपर से नीचे तक एक सम्पूर्ण कमल ही बिठाया गया हो । पत्थर के भारी टुकड़ों को जोड़ पाना सहज नहीं था । मानभूम के देउलों (देवालयों) के मशुक अंश का कलश किस रूप में था, वह पाकबिड़रा, बुधहर, गजपुर, छड़रा में अनादृत कलशों को जमीन पर लुढ़कते हुए देखने के बाद जाना जा सकता है । कलश पर जो ध्वजदंड होता था, उसका प्रमाण कलश के मुँह के छेदों से पता चलता है । पुरुलिया में कही भी अक्षत रूप से कलश एवं ध्वजदंड युक्त देवालय नहीं दिखता । बान्दा का देवालय ठीकठाक होते हुए भी उसपर कलश और ध्वजदंड नहीं है ।
पर्सी ब्राउन ने अपनी किताब Indian Architecture Vol I. के ३१वें अध्याय में बंगाल के रेख शैली के विशिष्ट देवालयों का उड़ीसा के