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जैनत्व जागरण.....
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कभी बाए रखते हुए बाँकुड़ा जिले के विष्णुपुर छातना और शुशुनिया होकर पुरुलिया के रघुनाथपुर व तेलकूपी के ऊपर से होकर यह सड़क जाता था। उस जमाने के बड़े व प्रतिष्ठित व्यापारी इसी राह से चला करते थे। तो जल और स्थल, दोनों राहों से ही तेलकूपी एक केन्द्रीय व्यापार की भूमि थी । और और इन्हीं व्यापारियों के हाथों ही ये देवालय बने थे । ये सभी मंदिर जैन व्यापारियों द्वारा ही निर्मित थे जिनमें कुछ मन्दिर परवर्ती काल में हिन्दू मन्दिरों में परिवर्तित किये गये ।
अब तेलकूपी के मंदिर और मूर्तियों की बात की जाए । अनगिनत देवालयों में अब सिर्फ तीन ही देवालय टिके हुए हैं। इनमें से दो, बारिश के मौसम में सम्पूर्ण जलमग्न रहते है और एक (ज्येष्ठ) के महीने के सिवाय सारा साल जल में डूबा रहता है। कितने दिन और ये टिक पायेंगे इसमें निश्चित संदेह है । दामोदर के पास ही पाथरबाड़ी गाँव बसा है । इस गाँव से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर एक टूटा देवालय प्राकृतिक थपेड़ों को सहता हुआ पूर्व दिशा की तरफ हिलकर टिका हुआ है। इसकी निर्माण प्रकृति बान्दा के देवालय जैसा है। यह मोटे तौर पर ५०-५५ फुट लम्बा था, लेकिन अभी इसकी उच्चता ४५ फुट के करीब होगी । इसकी चौड़ाई १३.५ - १५.५ फुट है । बान्दा के देवालय से यह आकार में काफी छोटा है । परन्तु शिल्पकारों ने इसे एक ही शैली में बनाया था, इसमें कोई संदेह नहीं है । देवालय के राढ़ अंश का काफी भाग धस चुका है । देवालय पूर्व दिशा की तरफ बना हुआ है। इसके मूल द्वार के बने अलंकार बान्दा के मंदिर से मिलते-जुलते है। दोनों तरफ त्रिशूल हाथ में लिए दो द्वाररक्षक खड़े दिखते हैं, जो पहले अद्भुत आलंकारिक सजावटों से सुसज्जित थे। देवालय के तीन कोणों में तीन स्थान बनाए गए थे खोदकर, जिनमें तीर्थंकर की तीन मूर्तियाँ विराजमान थीं। वे सब स्थान आज बने हुए हैं पर कोई तीर्थंकर मूर्ति विराजमान नहीं है। देवालय के भीतर जल निष्कासन की अच्छी व्यवस्था नजर आती है। पूजा अर्चना के समय जो पानी व्यवहार में लाया जाता था वह इसी निष्कासन नाली से होता हुआ सीधा दामोदर में चला जाता था ।