Book Title: Jainatva Jagaran
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

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Page 278
________________ जैनत्व जागरण...... ( पुरुलिया मंदिर स्थापत्य, दीपक रंजन दास से उद्धृत व अनूदित) लेकिन इस अंचल में उड़ीसा जैसा शिखर के प्राचीन रथ के आनुभाक अक्ष पर कभी भी बाहर की तरफ निकला हुआ तल दिखाई नहीं देता । देवालय का स्वरूप ठोस आकार धारण करता है, इसी कारण लम्बे होते हुए अक्ष में जो कोण है, वे वृत्ताकार बनकर शिखर को कमनीय नहीं कर सका है । ठीक उसी तरह राहा और उसके पार्श्वरथ के मिलन स्थल पर क्रमिक घटते हुए स्तर में निर्मित अंगशिखर की अनुपस्थिति पुरुलिया के शिखरों को उड़ीसा के शिखर से पृथक करते हैं । २७६ वाघ के देवालय में भी उड़ीसा के मंदिर - गात्र अलंकरण में जिस जालिकाका ( लता - पत्तों आदि का ) व्यवहार होता है, उसी प्रकार की जालिका मिलती है । इसके अलावे पुरुलिया के मंदिरों में चैत्य - जनकों (गवाक्षों) को भी देखा जा सकता है । पुरुलिया के देवालयों में माशुक अंश के ऊपर स्थित विशाल आमलक शिला की उपस्थिति, उसका निजी वैशिष्टय है । पुरुलिया की देवालय निर्माण शैली की एक और विशेषता है, देवालय के सामने पत्थर से बने बरामदे का होना । आज लगभग सभी देवालयों के बरामदे धँसकर टूट चुके हैं। सिर्फ बान्दा के देवालय का बरामदा किसी तरह टिका हुआ है | वह भी टूट गया था लेकिन पुरातात्विक सर्वेक्षण और संरक्षण विभाग, भारतं सरकार की सहायता से उसे पुराने ढांचे पर पुनर्निर्मित किया गया है । लेकिन कुछ स्तम्भ और बड़े-बड़े पत्थर के खंड़ों को देखने से लगता है कि बरामदा शायद और बड़ा रहा होगा । ठीक ऐसे ही बरामदे बुधपुर, पाकबिड़रा, महादेववेड़या के देवालयों में भी मौजूद था, यह पत्थर के विशाल खंभों को देखने से पता चलता है । लेकिन आज सारे टूट चुके हैं । I पुरुलिया के विभिन्न जगहों पर एक से ज्यादा, पत्थरों का बना उत्सर्गीकृत देवालय देखने को मिलता है । पाकबिड़रा, बार हमास्या, छड़रा आदि स्थानों पर ये देवालय पाये जाते है । आज सबसे बड़ा उत्सर्गीकृत देवालय ३/४-८ फीट ऊँचाई वाला है, जो पाकबिड़रा में पाया जाता है।

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