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जैनत्व जागरण.....
कि उच्चवेदी पर मंदिर प्रतिष्ठा, गर्भगृह में आधे से अधिक अंश से ज्यादा दीवार, पांच से अधिक रथ समन्वित आसन, निचले भाग में काम के मूल चरित्र का विस्मरण और काम की संख्या कम से कम पाँच से अधिक करना ऊँचाई के प्रति अधिक आकर्षण आदि विशिष्टताएं इन मंदिर समूहों के ११वीं सदी के बाद बने होने के ही सूचना देती है ।
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तैलकम्प या तेलकूपी: आज दामोदर के गर्भ में विलुप्त हो चुकी तैलकम्प या तेलकूपी, उस जमाने की एक बड़ी बन्दरगाह नगरी थी । नगरी का नाम तेलकूपी क्यों पड़ा, इसे लेकर पण्डितों में काफी विवाद है । कईयों के अनुसार संस्कृत तैलकम्प से तेलकूपी शब्द आया है । संस्कृत में तैल मतलब तेल | कौटिल्य के अर्थशास्त्र में तैल को एक प्रकार का कर माना जाता था । कम्प आया है कम्पन से कम्पन का अर्थ है परगना । तो, यह अनुमान किया जा सकता है कि आज का तेलकूपी किसी समय एक करप्रदान करने वाला सामंती राज्य था ।
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तरुणदेव भट्टाचार्य के अनुसार विलिंग या तैलंगो को यह कर (Tax) प्रदान किया जाता था । लेकिन यह मत भी विवादास्पद है । प्राचीन इतिहास में तेलकूपी को लेकर ठोस कुछ भी नहीं पाया जाता । लेकिन संध्याकर नंदी के रामचरितम् काव्य में तेलकम्प शब्द मिलता है ।
" शिखर इति समर परिसर सिसदरिराज राजिगंज गब्बगहन दहन दावानस्तैलकम्पीर कल्पतरू रुद्रशिखर"
अर्थात् युद्ध में जिसका प्रभाव नदी पर्वत से विस्तीर्ण था, पर्वत कन्दर के राजवर्गों का दर्प हरण करनेवाले, दावानल के समान, वह तैलकम्प के कल्पतरू रूद्रशिखर है ।
संध्याकर नंदी रचित रामचरितम काव्य की समयसीमा प्रमुख पर १०७०-११२० ई. है । काव्य का मूल विषय पाल वंश के शासक रामपाल की कीर्तियों का वर्णन है । कवि ने अपनी काव्यप्रतिमा के रूप में एक ही संकेत में अयोध्या के राजा राम और पाल नरेश रामपाल का यशोगान किया है | रामचरित काव्य में रूद्रशिखर तैलकम्प के राजा थे, इसे हम