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जैनत्व जागरण.....
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गया है। पूरे गाँव के मकानों में मंदिरों की ईंटें व्यवहार में लायी गयी है। किस तरह जैन संस्कृति का हास हुआ इसका एक उदाहरण तेलकूपी का है। जहाँ दामोदर नदी पर पांचेत डैम के निर्माण के समय बीस प्राचीन मंदिर पानी के गर्त में चले गये । दुर्भाग्यवश भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की यह स्वप्नपरियोजना के रूप में भारत का पहला सबसे बड़ा औद्योगिक प्रोजेक्ट था जो शुरू हुआ। पर वास्तव में ये परियोजना थी प्राचीन विरासत का समाप्त करके विकासशील योजना कार्यान्वित करने की ।
For the archaeological heritage of Jharkhand it was a catastrophe apart from the human and ecological aspects. Hundreds of villages were submerged in over six large dams and thousand of smaller dams. Like the TVA the DVC ignored the territorial rights of Indigenous societies who had lived on the land ancestrally.
१९५७ में वहाँ के स्थानीय लोगों में दामोदर में बाढ़ की आशंका को देखकर archeological research of India Kolkata को सूचित किया और मन्दिरों को स्थानान्तरित करने को कहा लेकिन ASI की निष्क्रियता के कारण मन्दिर डूब गये । साक्ष्य के लिए रह गये हमारे पास १८७२७३ में बेगलर के लिये चित्र और १९२९ में बोस के लिये चित्र । ASI के D.G. ने जब वहा का भ्रमण किया तो उनके साथ Dr Mrs. Debala Mitra भी गयी । वहाँ उन्होंने स्थानीय लोगों से भैरव स्थान के मन्दिरों के विषय में जानकारी ली और उनके विषय में लिखा । सन् १९६० की फोटो सेयह पता चलता है कि उस समय जो मन्दिर पानी के किनारे थे वह अच्छी हालत में थे और उन्हें स्थान्तरित किया जा सकता था । लेकिन अधिकारियों की दूरदर्शिता और निकम्मेपन के कारण यह नहीं किया गया। फलस्वरूप १९६२ के चित्रों से यह पता चलता है कि ये मन्दिर भी पानी में चले गये । चालीस साल बाद चांदिल डैम के निर्माण के समय भी ऐसा ही हुआ ।