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जैनत्व जागरण.....
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'समन' और जिन शब्द का प्रचलन अधिक मिलता है । चीनी भाषा में 'समन' को 'Wu' कहते हैं । 'Wu' का सबसे प्रथम वर्णन १६०० ई.पू. में Shang Dynasty के शासन में मिलता है । बाद में यहीं शब्द चीनी बौद्ध ग्रन्थों में श्रमण के रूप में लिखा जाने लगा । यद्यपि कुछ विद्वानों के अनुसार साइबेरियन समन और चीनी Wu में कुछ अन्तर है लेकिन लेखक आर्थर वेली ने लिखा है कि “ Indeed the functions of the Chinese Wu were so like those of siberian and Tungus Shamans that it is Convenient......to use as a translation of Wu." इस प्रकार यह समन शब्द श्रमण का ही अपभ्रंश है । मिस्त्र से ईराक, ईरान, टर्की, यूनान, रूस, चीन, मंगोलिया तथा दक्षिण पूर्वी एशिया के प्राचीन देशों की आदि परम्परा समन ही रही है । इसी परम्परा में जिन, अर्हत, अरिहंत, व्रात्य, निर्ग्रन्थ, श्रमण और तीर्थंकर होते हैं ।
१. जिन इस श्रमण परम्परा के प्रतिष्ठापक जितेन्द्रिय होने के कारण जिन कहलाते हैं ।
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अर्हत् समस्त पूज्य गुणों से युक्त होने के कारण अर्हत् नाम से अभिहित,
वातरशना निरन्तर योगपूर्वक सदाचरम के मार्ग पर आरुढ़ होने के कारण वातरशना.
व्रात्य - व्रतपूर्वक सदाचरण के मार्ग पर आरूढ़ होने के कारण व्रात्य, निर्ग्रन्थ समस्त अंतरंग और बहिरंग से मुक्त होने से निर्ग्रन्थ. समन - सम्पूर्ण समत्व के साधक और उद्घोषक होने के कारण समन. स्वेच्छा एवं श्रमपूर्वक तप, त्याग, संयम का मार्ग अपनाने के कारण श्रमण..
श्रमण
तीर्थंकर - संसार को दुःखरूप जान और मानकर उससे पार होने के लिए धर्मरूपी तीर्थ का प्रारम्भ करने के कारण तीर्थंकर. अरिहंत - रागद्वेष रूपी आंतरिक शत्रुओं पर विजय पारने के कारण अरिहंत.
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