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जैनत्व जागरण.....
मेदनीपुर के कुछ क्षेत्र मल्लभूमि के अन्तर्गत आते थे । मगध से ताम्रलिप्त जाने के रास्ते में इस भूग-भाग का होने का कारण इसका बहुत महत्व था। यह अंचल ताम्र और लौह खानों से समृद्ध था । बंगाल के ताम्रलिप्त बंदरगाह से मगध साम्राज्य का सारा आयात और निर्यात विदेशों को होता था । पाटलिपुत्र से ताम्रलिप्त तक के आवागमन के पथ पर ताम्र और लौह खदानों का होना इस क्षेत्र की समृद्धि का प्रमुख कारण रहा ।
प्रसिद्ध इतिहासकार डी.डी. कोसम्बी ने मगध के विषय में लिखा है- “Magadha had something for more important : the metals, and proximity to the river... Rajgir had the first immediate source of iron at its disposal. Secondly, it stradded (with Gaya to which the passage was through denser forest) The main route to India's heaviest deposits of iron and copper, to the south cast in the Dhalbhum and Singhbhum districts.. thus Magadha had a near monopoly over the main source of state craft. Chanakya was fully aware of the importance of mining : The treasury depends upon mining, the army upon treasure (Artha 2.12) : The mine is the womb of war materials (Artha 7...)” अर्थात् “मगध की समृद्धि एवं निरन्तर विकास का स्रोत उसकी धातु-सम्पदा थी । प्राचीन इतिहास के धातु युग की स्थापना तथा प्रगति ताबे के साथ हुई, जो परवर्ती काल में अपनी विशिष्ट भौतिक गुणवत्ता के कारण मुद्रा धातु के रूप में परिवर्तित होकर मुद्रा निर्माण के लिए अत्यन्त आवश्यक हो गया । मगध की दूसरी धातु-सम्पदा लौह थी, जिसका सन्धान परवर्ती काल में हुआ था तथा जिसका खनन और निष्कासन बहुत बाद में हुआ। फिर भी सभ्यता के विकास क्षेत्र में विशेषकर भारतवर्ष के आस-पास को कृषि के अनुकूल बनाने में आवश्यक हथियार के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।" तांत शिल्प :
इस अंचल की सराक संस्कृति का गतिपथ सहज नहीं था। सर्वप्रथम, उन्हें आदिवासियों से युद्ध कर जंगलों को काटकर बस्तियां बसानी पड़ी।