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जैनत्व जागरण .....
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भी परिलक्षित होते हैं । बाँकुड़ा जिले के ईंदपुर थाने के जोड़दा ग्राम की ब्रह्माधान में रक्षित पाषाण मूर्तियों का संग्रह, तालडांगरा थाना के देउलभिड़ा ग्राम से राखालदास बन्दोपाध्याय द्वारा संग्रहित और भारतीय संग्रहालय, कलकत्ता में रक्षित “पार्श्वनाथ" की मूर्ति, विष्णुपुर थाना के धरापाट ग्राम के पाषाण मन्दिर में स्थापित आदिनाथ और पार्श्वनाथ की दो मूर्तियाँ, ऊँदा थाना के बहुलाड़ा ग्राम के सिद्धेश्वर शिवालय के गर्भ गृह में रक्षित पार्श्वनाथ मूर्ति और अनेकों जैन स्तूपों के चिन्ह, सोनामुखी थाने के मदनपुर ग्राम की महावीर मूर्ति के अतिरिक्त एक्तेश्वर, डिहर, हाड़मासरा, अम्बिकानगर, चित्गिरि, चेयादा, केन्दुया, गोकुल, शालतोड़ा, ओका, बरकोणा इत्यादि गाँवों में जैन-संस्कृति ये प्राचीन साक्ष्यं वर्त्तमान हैं । धारापाट गाँव के नेंगटा ठाकुर मन्दिर के उपास्य देव हैं नागछत्रधारी जैन तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ति । द्वारकेश्वर नदी को पार कर धारापात पहुँचने के मार्ग में कई शिवालय दृष्टिगोचर होते हैं जो देव मन्दिर है । धारापात में ही देव प्रतिमा विहीन एक मन्दिर है जिसके बाहरी भाग के आलों में विशाल प्रतिमाएं विराजित थी । भगवान ऋषभदेव, शान्तिनाथ भगवान आदि की ये प्रतिमाएं लगभग बारह सौ से पन्द्रह सौ वर्ष प्राचीन थी । इस मन्दिर के ठीक पीछे एक और मन्दिर में भगवान पार्श्वनाथ की सप्तफणा प्रतिमा थी । इन क्षेत्रों में जहाँ जहाँ भी जिन प्रतिमाएं है उन्हें लोग नग्टेश्वर शिव, तो कहीं भैरव आदि नामों से पुकारते हैं ।
जैन धर्मावलम्बी, जो जैन संस्कृति का केन्द्र है, सराक जाति का निवास ग्राम है बाँकुड़ा का शालातोड़ा, जो जैन संस्कृति का केन्द्र है | हाड़मासरा गाँव की सीमा में भी एक पत्थर का शिखर युक्त छोटा मन्दिर है । इसके पीछे जंगल में एक पार्श्वनाथ भगवान की खड़ी प्रतिमा है । जिसके परिकर में नवग्रह, अष्टमहाप्रातिहार्य धरणेन्द्र, पद्मावती आदि निर्मित हैं । कंसावती नदी के तट पर बंधे हुए बांध के पास पारसनाथ नाम का गाँव है, वहाँ एक पहाड़ी पर भगवान पार्श्वनाथ की विशाल प्रतिमा दो टुकड़ों में खंडित पड़ी है । कंसावती और कुमारी नदी के संगम पर बसे अंबिका नगर में जैन शासनदेवी अंबिका के मन्दिर के पृष्ठ भाग में एक जैन मन्दिर अवस्थित