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जैनत्व जागरण.....
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है जिसमें आदिनाथ ऋषभदेव स्वामी की सुन्दर प्रतिमा है ।
कंसावती नदी के ही दक्षिणी तट पर मेदिनीपुर शहर की विपरीत दिशा में खड़गपुर थानान्तर्गत बालिहटी के जैन मन्दिर के ध्वंसाशेष दक्षिण पश्चिम बंग में जैन प्रभाव का अन्यतम दृष्टान्त है। कुछ साल पहले कोलाघाट के पुल निर्माण के समय रूपनारायण नदी के गर्भ से एक प्राचीन मूर्ति निकाली गयी । बालिहाटी का पार्श्ववर्ती अंचल जिन शहर नाम से भी परिचित है। कुछ मील दूर पाथरा ग्राम में भी पाया गया है एक जैन चौमुख जिस पर जैन तीर्थंकरों की मूर्तियाँ खुदी हुई हैं । पुरुलिया जिले के बांगमुण्डी थाना का देउली उस समय जैन धर्म का अन्यतम विकास-स्थल था । इस जिले के तेलकूपी में इतनी जैन मूर्तियाँ पायी गयी हैं कि विस्मित हुए बिना नहीं रहा जाता । तेलकूप में तीन विख्यात मन्दिरों का पता लगा है। दो छोटे मन्दिर सबसे पुराने हैं । ये दोनों सराकों द्वारा निर्मित जैन मन्दिर हैं । बड़ा मन्दिर तो एकदम दामोदर के किनारे पर ही है। अवश्य ही वर्तमान में यह मन्दिर टूट गया हैं । इसके ध्वंस स्तूप के मध्य और एक मन्दिर निर्मित किया गया था। इस नवीन मन्दिर का आकार बहुत कुछ शिव मन्दिर जैसा है. सम्भवतः मूल मन्दिर के टूट जाने पर मन्दिर की विख्यात् भैरवनाथ की मूर्ति नवीन मन्दिर में रख दी गयी है। वर्तमान में यह मन्दिर दामोदर की मिट्टी में फंस गया है।
भैरवनाथ तेलकूपी के विख्यात् और जागृत देवता कहे जाते हैं । भैरवनाथ की मूर्ति अवश्य ही जैन तीर्थंकर महावीर की मूर्ति है । अतीत में ये विरूप नाम से पूजे जाते थे। बाद में यह अहिंसा धर्म के साधक पुरुष हिन्दू ब्राह्मण संस्कृति के साथ युक्त होकर भैरव नाम में रूपान्तरित हो गए । ऐसा ही हुआ है पाकविड़रा में । ब्राह्मण संस्कृति के कालभैरव का यथार्थ रूप किस किस्म का है यह कोई नहीं जानता फिर भी तीर्थंकरों के दिगम्बर रूप भैरवनाथ का एक आकर्षणीय रूप कल्पित करने में इस अंचल के मनुष्यों की सहायता करता है । तेलकूपी के भैरवनाथ चौबीसवें तीर्थंकर महावीर हैं यह बात मिस्टर ई.टी. डाल्टन ने स्वीकार की थी। इस प्रसंग में उनकी उक्ति स्मरणीय हैं :