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जैनत्व जागरण.....
अम्बिका देवी,शिमलापाल थाने की जोड़सा और गोतड़ा की अम्बिका देवी जैन धर्म से सम्बन्धित हैं । ये सब लौकिक देवी रूप में ही पूजी जाती हैं । छान्दाड़ के निकटवर्ती पांचाल ग्राम की वृहद् परशा पुष्करिणी के साथ पार्श्वनाथ का सम्बन्ध स्पष्ट है । श्रद्धेय माणिकलाल सिंह द्वारा संग्रहीत इन तथ्यों के अतिरिक्त चुपामनसा के कपिलेश्वर शिव का गाजन और स्थानीय मनसा पूजा के समय तीर्थंकर मूर्ति खुदी एक जैन मन्दिर की प्रतिकृति की पूजा उल्लेखनीय है । यह घटना बड़जोड़ा थाना के मेटेली में भी देखी जाती है । पत्थर की इस क्षुद्राकार मन्दिर की प्रतिकृतियों में आदिनाथ, पार्श्वनाथ, शान्तिनाथ और महावीर मूर्तियाँ खुदी हुई है । (त्रिपुरा-बसु).
चौबीस परगना जिले के दक्षिण प्रान्तिक अंश या सुन्दरवन सीमा के मध्य जैन धर्म संस्कृति के बहुत से निदर्शन पाए गए हैं। वर्तमान सुन्दरवन सीमा में बहुत से स्थान पहले खुष्टीय बारहवीं शताब्दी में भी अरण्ययुक्त और समृद्ध जनपद पूर्ण थे और इनके अंशविशेष राढ़ और पुण्ड्रवर्द्धन भुक्ति के अन्तर्भुक्त थे।
इस जिले के डायमण्ड हार्बर महकमे के दुर्गम ग्राम में दो प्राचीन ध्वंस स्तूप (गत शताब्दी में वन बसने के पश्चात् से) पाए जाते हैं । ये दोनों स्थान लोगों में मठवाड़ी के नाम से परिचित हैं। पहला घोष लोगों के चौक में वाइसहाटा ग्राम के प्रान्त में धान क्षेत्र का विराट स्थान अधिकृत किए हुए है कुछ समय पूर्व इसकी ऊँचाई थी प्राय: बीस फुट । वर्तमान में कुछ हस हो गया है। इसी वाइसहाटा की मठवाड़ी से कई मील दूर द्वितीय मठवाड़ी नलगोड़ा नामक ग्राम के समीप है । वर्तमान में यह ऐतिहासिक व पुरातात्त्विकों के निकट परिचित जटार देउल से ४-५ मील के मध्य है । अभी इस नलगोड़ा मठवाड़ी के समस्त चिन्ह लुप्त होते जा रहे हैं स्थानीय लोगों द्वारा यहाँ की ईटें उठा ले जाने का कारण विख्यात पुरातत्त्वविद् स्वर्गीय कालिदास दत्त महाशय के अनुसार दोनों मठवाड़ियों का जैन मठ होना ही संभव है। कारण इस अंचल में बहुत से जैन निदर्शन आविष्कृत हुए हैं। प्रसंगतः इस क्षेत्र में इस स्थान के विख्यात जटार देउल का उल्लेख किया जा सकता है । कोई-कोई विद्वान् अनुमान करते हैं