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जैनत्व जागरण.....
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सराकों का कोई भी मनुष्य किसी भी प्रकार के घृणात्मक अपराध के लिए कभी कोर्ट से दण्डित नहीं हुआ । अर्थात् इन लोगों में अपराधियों की संख्या नितान्त अल्प या नहीं है बोलने से भी अत्युक्ति नहीं होगी ।
स्त्रियाँ खूब रक्षणशील होती हैं। किसी भी प्रकार से अन्य किसी जाति के घर खाद्य ग्रहण नहीं करती; न ही वहाँ रात व्यतीत करती हैं । इसके अतिरिक्त वे लोग चमड़े का जूता नहीं पहनती ।
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धर्म परिवर्तन होने पर भी ये लोग २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के उपासक है तथा सम्मेत शिखर की यात्रा करते हैं तथा जिस दिशा में सम्मेत शिखर है उस दिशा में धान अर्पण करते हैं ।
१८६३ वृष्टाब्द में मिस्टर ई. टि. डाल्टन ने पुरुलिया का सराक प्रभावित ग्राम झापड़ा का परिदर्शन किया । वे सराक समाज के मनुष्यों के आचार-आचरण, रीति-नीति एवं उनके व्यवहार पर मुग्ध होकर लिखते हैं- “They called themselves Saraks and they prided them
selves on the fact that under our Government not one of their community had ever been convicted of a heinous crime." बुद्धि प्रवृत्तियों की प्रशंसा करते हुए वे आगे लिखते हैं- “who (saraks) struck me as having a very respectable and intelligent appearence.”
सराकों ने अपने उन दिनों के इतिहास को आज भी बना रखा है वे एक सुश्रृंखल जाति हैं । सराक कानून के अनुसार चलना पसन्द करते हैं। किसी भी कारण से किसी दिन भी उन्होंने सरकार के प्रति विद्रोह घोषित नहीं किया । मिस्टर डाल्टन का कथन है- They are essentially a quiet and law-abiding community, living in peace among themselves and with their neighbours."
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सराक स्त्रियों की रीति-नीति बतलाते समय सर हारबर्ट रिसले सराकों की रसोई घर का वर्णन करते हैं । उन्होंने सराकों की अहिंसा धर्म के प्रति