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जैनत्व जागरण.......
"There is another of these temples at Telkoopi on the Damodar, and there is an image still worshipped by the people in the neighbourhood which they call Birup. It is probale intended for the 24th Tirthankara Vira or Mahavira, the last Jine."
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कहा जाता है कि तेलकूपी के भैरवनाथ का मन्दिर किसी राजा महाराजाओं द्वारा निर्मित नहीं किया गया था । यह तो बनाया गया था शिल्पपतियों के द्वारा । मन्दिर निर्माण में सराक जैन शिल्पियों के हाथों की छाप इनमें हैं ।
कुछ किंवदन्तियों होने पर भी तेलकूपी का अपना इतिहास है । एक समय यही गाँव इस अंचल की विख्यात् शिल्प नगरी थी । मि. डाल्टन ने इस शिल्पनगरी के तोरणद्वार को खोज निकाला था। किसी समय ताम्रलिप्त से घाटाल, विष्णुपुर, छातना, रघुनाथपुर से तेलकूपी पर्यन्त एक रास्ता बनवाया गया था । तदुपरांत यही रास्ता दामोदर पार होकर पाटलिपुत्र तक चला गया था । उस समय घाटाल, विष्णुपुर, रघुनाथपुर, आदि स्थान तांत- शिल्प में उन्नत थे । शिल्पपति ताम्रलिप्त से इसी रास्ते से पाटलिपुत्र जाते थे । में पड़ता तेलकूपी नगर । यहाँ कुछ दिन वे विश्राम करते । फिर वर्षा के दिनों में दामोदर पार होना सहज कार्य नहीं था उन दिनों शिल्पपतियों को कुछ दिन तेलकूपी में रहना ही पड़ता था । तब तेलकूपी एक विख्यात सराय-सी थी । इसी प्रसंग में मि. कूलपैण्ड लिखते हैं
राह
"According to tradition, the temples at Telkoopi are ascribed to merchants and not to Raja or Holymen, and the inference is that a large trading settlement spring up to this pont where the Damodar River would present at any rate in rainy seasons, a very considerable obstacle to the travellers and merchants.
तेलकूपी के प्रसंग में आलोचना करते हुए एक विषय हमारे मन को बहुत आकृष्ट करता है । वह विषय है तेलकूपी के भैरवनाथ । तेलकूपी के भैरवनाथ और पाकविड़ा के महाकाल भैरव दोनों ही जैन तीर्थंकरों की