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जैनत्व जागरण.......
सराकों की आदिवासी भूमि व वासभूमिका परिवर्तन
जैन इतिहास के अनुसार सराकों में जिनका आदिदेव गौत्र है, वे श्री आदिदेव के उत्तर सूरी है ।
जिनका अनंतनाथ गौत्र है, वे श्री अनंतनाथ के उत्तर सूरि है जिनका धर्मदेव गौत्र है, वे श्री धर्मनाथके उत्तर सूरि है जिनका शंडिल गौत्र है, वे श्री शांतिनाथके उत्तर सूरि है जिनका काश्यप गौत्र है, वे श्री पार्श्वनाथ के उत्तर सूरि है ।
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भगवान श्री आदिनाथ, भगवान श्री धर्मनाथ, भगवान श्री अनंतनाथ एवं भगवान श्री शांतिनाथ का जन्म सरयु नदी के तटभूमि अयोध्या व रत्नपुर तथा पार्श्वनाथ भगवान का जन्म स्थान गंगानदी के तीरवर्ती वाराणसी है, इसलिए कहा जा सकता है कि सराक जाति के आदिवास स्थान भारत के उत्तर पश्चिम प्रांत में था । परवर्तीकाल में जैनधर्म के प्रचार एवं व्यवसायवाणिज्य आदि नानाविध कारणों के माध्यमसे श्रावकों को छोटा नागपुर के मानभूम प्रांत में आकर बसना पड़ा था ।
सम्मेतशिखर, (शिखरभूम), राजगृही, पावापुरी, चंपापुरी आदि से लेकर रांची, मानभूम तक डेढ़ सौ माईल व्यास के अर्धवृत्त ग्राम्यभित्तिक अर्थनैतिक व्यवसाय में सराक गणने अपना नवीन जीवन प्रारंभ किया था । चौबीस तीर्थंकरों में से बीस तीर्थंकर तो सम्मेतशिखरजी (शिखरभूम) पर निर्वाण हु थे । इस विषयमें सर हरबर्ट रिसले साहेब ने लिखा है पारसनाथ (पार्श्वनाथ) को ही “सराक" संम्प्रदायने अपने आराध्य देव के रूप में ग्रहण किया था ।
“On the other hand, Parswanath, the Twenty third Tirthankar who is belived to have attained Nirvana on Parswanath hill in Hazaribagh is still recognized by the sarak as their Chief deity...” (Risley Herbert Hope. The Tribes and castes of Bengal, Vol-II, Cal-1981, P. P. 237)
भगवान श्री महावीर स्वामी जी के पिता सिद्धार्थ राजा जैसे भगवान