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जैनत्व जागरण.....
कभी आहार के लिये काटा (कट) शब्द का मन्तव्य करें तो खाद्य द्रव्यको फेंक देने का रिवाज है ।
प्रसंगतः रिसले साहेब के आलोच्य अंग को उद्धृत करते है"सराकगण" कट्टर निरामिष भोजी है वे कभी मिषभोजन नही करतें है। जीव हिंसा से वे सर्वदा विरत रहते है । 'कट' शब्द अमंगल सूचन है, मानकर महिलाएं कभी "कट" शब्द नहीं कहती है।
Their name is a variant of sravaka (sankrit hearer) the designation of the Jain laity, they are strict Vegetarians, never eating flesh and on no account taking life and if I preparing the. food any mention, is made of the word, 'Cutting’ the omen is deemed so disastrous that everything must be thrown away." (Ristey. H. H. The people of India. P-79)
___ सराकजाति आज भी लाल रंग की खाद्य वस्तुओंको नहीं लेते...जैसे बीट, गाजर, इत्यादि तो कंदमूल है, मगर लाल सिमि, लाल तांदलिया एवं तरबूज भी नही खाते ।
- पानी छाने बिना नही पीते है। - अन्य जाति के घर आहार नहीं करते है। - महिलाए आज भी होटलों में नही खाती है । - स्नान किये बिना भोजन या रसोई का काम नही करती है ।
इनके इस तरहकी आचारसंहिताके देखकर पू. मंगल विजयजी एवं प्रभाकर विजयजी उसी क्षेत्रमें रहे एवं उद्धार कार्य में उमड पडे थे । उन मुनिद्धय का आभार जैन सम्प्रदाय एवं सराक समाजको मानना चाहिए । उन मुनिद्वय की प्रेरणा से झरिया में एक सराकोंके लिये शिक्षा केन्द्र बना था। वह कहाँ गई, और कैसे गई । जैन बंधुओं को ध्यान देना चाहिये। पू. प्रभाकर विजयजी की प्रेरणा से धर्ममंगल जैन विद्यापीठ की रचना सराको के लिये हुई थी जो आज सम्मेतशिखरमें विद्यमान है ।