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जैनत्व जागरण.....
It may also be noted that incription on the Indus seal No. 449 reads according to my decipherment “Jinesh”. (Indian Historical Quarterly, Vol. VIII, No. 250)
इसी बात का समर्थन करते हुए डॉ. राधाकुमुद मुखर्जी लिखते हैं कि- फलक १२ और ११८ आकृति ७ (मार्शल कृत मोहन जोदड़ो) कायोत्सर्ग नामक योगासन में खड़े हुए देवताओं को सूचित करती हैं । यह मुद्रा जैन योगियों की तपश्चर्या में विशेष रूप से मिलती है । जैसे मथुरा संग्रहालय में स्थापित तीर्थंकर ऋषभ देवता की मूर्ति में । 'ऋषभ' का अर्थ है बैल, जो 'आदिनाथ' का लक्षण है । मुहर संख्या F.G.H. फलक पर अंकित देव मूर्ति में एक बैल ही बना है । संभव है यह ऋषभ का ही पूर्व रूप हो । ( हिन्दू सभ्यता पृ. ३९ जैन धर्म और दर्शन )
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इसी बात की पुष्टि करते हुए प्रसिद्ध विद्वान राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर लिखते हैं - मोहनजोदड़ो की खुदाई में योग के प्रमाण मिले हैं और जैन मार्ग के आदि तीर्थंकर ऋषभदेव थे । जिनके साथ योग और वैराग्य की परम्परा उसी प्रकार लिपटी हुई हैं जैसे कालांतर में वह शिव के साथ समन्वित हो गयीं । इस दृष्टि से जैन विद्वानों का यह मानना अयुक्तियुक्त नहीं दिखता कि ऋषभदेव वेदोल्लिखित होने पर भी वेद पूर्व हैं । (संस्कृति के चार अध्याय)
इसी संदर्भ में प्रसिद्ध इतिहसकार डॉ. एम. एल. शर्मा ने लिखा है -
मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहर पर जो चिन्ह अंकित है वह भगवान ऋषभदेव का है । यह चिन्ह इस बात का द्योतक है कि आज से पांच हजार वर्ष पूर्व योग साधना भारत में प्रचलित थी और उसके प्रवर्तक जैन धर्म के आदि तीर्थंकर ऋषभदेव थे । सिंधु निवासी अन्य देवताओं के साथ ऋषभदेव की पूजा करते थे ।
( भारत में संस्कृति और धर्म ) मुनि श्री विद्यानन्दजी महाराज ने अपने लेख, मोहनजोदड़ो : जैन