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जैनत्व जागरण...
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किया गया है । ब्राह्मण वैदिक साहित्य में इन क्षेत्रों को अनार्य घोषित किया गया है क्योंकि यहाँ के निवासी जैन धर्मानुयायी थे । बौद्ध साहित्य में भी इन क्षेत्रों की उपेक्षा की गयी है। जब कि जैन साहित्य में इन क्षेत्रों को आर्य क्षेत्र माना गया है । वास्तव में देखा जाए तो इन क्षेत्रों के आर्याकरण में भगवान ऋषभदेव से भगवान महावीर एवं उनके शिष्यों-प्रशिष्यों का बहुत बड़ा हाथ रहा ।
भगवती सूत्र के अनुसार वज्ज भूमि के क्षेत्र पणिय भूमि में भगवान महावीर ने छ: वर्षावास व्यतीत किये थे । वीरभूम, वर्द्धमान ने छः वर्षावास व्यतीत किये थे । वीरभूम, वर्द्धमान आदि क्षेत्र आज भी उनके नाम की स्मृति को अक्षुण्ण बनाये रखे हैं । आचारांग सूत्र के अनुसार महावीर ने राढ़ क्षेत्र की ऊसर भूमि में अनेक विपत्तियों का सामना किया था । आचारांग सूत्र के नवें अध्ययन के तृतीय उद्देशक में लिखा है
अह दुच्चरं लाढमचारी वज्जभूमियं सुब्मभूमियं पंतं सिज्जं सेविंसु, आसणगणि चेव पंताणि ॥२॥
अर्थात्-जहाँ विचरना बहुत ही कठिन है ऐसे लाढ़ देश की वज्र भूमि और शुभ्र भूमि इन दोनों प्रदेशों में भगवान विचरे थे । वहाँ अनेक उपद्रवों से युक्त सूने घर आदि में भगवान ने विश्राम किया था ।
लाढेहिं तस्सुवसग्गा बहवे जाणवया लुसिंसु,
अह लूह दैसिए भत्ते, कुक्कुरा तत्थहिंसिंसुणि-वसु ॥३
लाढ़ देश में विचरते समय भगवान को बहुत उपसर्ग हुए थे । वहाँ के निवासी लोग भगवान को मारते थे, कुत्ते उन्हें काटते थे और उन पर टूट पड़ते थे ।
णागो संगाम सीसे व पारए तत्थ से महावीरे ।
एवं वि तत्थ लाढेहिं अलद्धपुव्वो वि एगया गामो ॥८
जैसे हाथी संग्राम के अग्रभाग में जाकर शत्रुओं के प्रहार की परवाह न करता हुआ शत्रु सेना को जीतकर उसको पार कर जाता है इसी तरह भगवान महावीर स्वामी ने भी लाढ़ देश के परिग्रहों को जीतकर उस देशको