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________________ जैनत्व जागरण... २०६ 1 किया गया है । ब्राह्मण वैदिक साहित्य में इन क्षेत्रों को अनार्य घोषित किया गया है क्योंकि यहाँ के निवासी जैन धर्मानुयायी थे । बौद्ध साहित्य में भी इन क्षेत्रों की उपेक्षा की गयी है। जब कि जैन साहित्य में इन क्षेत्रों को आर्य क्षेत्र माना गया है । वास्तव में देखा जाए तो इन क्षेत्रों के आर्याकरण में भगवान ऋषभदेव से भगवान महावीर एवं उनके शिष्यों-प्रशिष्यों का बहुत बड़ा हाथ रहा । भगवती सूत्र के अनुसार वज्ज भूमि के क्षेत्र पणिय भूमि में भगवान महावीर ने छ: वर्षावास व्यतीत किये थे । वीरभूम, वर्द्धमान ने छः वर्षावास व्यतीत किये थे । वीरभूम, वर्द्धमान आदि क्षेत्र आज भी उनके नाम की स्मृति को अक्षुण्ण बनाये रखे हैं । आचारांग सूत्र के अनुसार महावीर ने राढ़ क्षेत्र की ऊसर भूमि में अनेक विपत्तियों का सामना किया था । आचारांग सूत्र के नवें अध्ययन के तृतीय उद्देशक में लिखा है अह दुच्चरं लाढमचारी वज्जभूमियं सुब्मभूमियं पंतं सिज्जं सेविंसु, आसणगणि चेव पंताणि ॥२॥ अर्थात्-जहाँ विचरना बहुत ही कठिन है ऐसे लाढ़ देश की वज्र भूमि और शुभ्र भूमि इन दोनों प्रदेशों में भगवान विचरे थे । वहाँ अनेक उपद्रवों से युक्त सूने घर आदि में भगवान ने विश्राम किया था । लाढेहिं तस्सुवसग्गा बहवे जाणवया लुसिंसु, अह लूह दैसिए भत्ते, कुक्कुरा तत्थहिंसिंसुणि-वसु ॥३ लाढ़ देश में विचरते समय भगवान को बहुत उपसर्ग हुए थे । वहाँ के निवासी लोग भगवान को मारते थे, कुत्ते उन्हें काटते थे और उन पर टूट पड़ते थे । णागो संगाम सीसे व पारए तत्थ से महावीरे । एवं वि तत्थ लाढेहिं अलद्धपुव्वो वि एगया गामो ॥८ जैसे हाथी संग्राम के अग्रभाग में जाकर शत्रुओं के प्रहार की परवाह न करता हुआ शत्रु सेना को जीतकर उसको पार कर जाता है इसी तरह भगवान महावीर स्वामी ने भी लाढ़ देश के परिग्रहों को जीतकर उस देशको
SR No.002460
Book TitleJainatva Jagaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhushan Shah
PublisherChandroday Parivar
Publication Year
Total Pages324
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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