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जैनत्व जागरण.....
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सत्य हो, तो फिर यह स्वीकार किया जा सकता है कि पार्श्वनाथ ने वर्द्धमान महावीर से पहले ही पश्चिम बंगाल और बिहार में धर्मप्रचार किया था ।"
(बंगाल सीमांत पर बसा सराक सम्प्रदाय) श्री अमरेन्द्रकुमार सराक लिखते हैं- "जैन शास्त्रों के अनुसार प्रभु पार्श्वनाथ का जन्म ईसा पूर्व ८७७ को काशी में हुआ था। उनके पिता का नाम राजा अश्वसेन, माता का नाम वामादेवी एवं पत्नी का नाम प्रभावती था । महाराज अश्वसेन नागवंशी नृपति थे। भगवान पार्श्वनाथ ने सत्तर वर्ष तक धर्म प्रचार किया और सौ वर्ष की अवस्था में उनको श्री सम्मेद शिखरजी में मोक्ष प्राप्त हुआ । प्रभु पार्श्वनाथ के निर्वाण के पश्चात् उनके साथ आये हुए सराकों के पूर्वज श्रावक लोग पार्श्वनाथ पर्वत संलग्न क्षेत्र में ही बस गये । आज से १५०-२०० साल पहले तक भी सराक जाति के लोग सवेरे बिस्तर छोड़ने के बाद पहले भगवान पार्श्वनाथ का स्मरण करते थे एवं सम्मेद शिखर की तरफ मुड़कर नत मस्तक होते थे । वर्तमान हिन्दु समाज में जैसे एक कहावत है कि - सभी तीर्थों की यात्रा बार-बार करने से जो फल मिलता है, गंगासागर पर एक बार यात्रा करने से ही वह फल मिलता है। उसी प्रकार आज से ६० वर्ष पूर्व मैंने भी एक १५५ वर्ष उम्र के मेरे ही गांव के एक वृद्ध व्यक्ति से सुना था कि हमारा सबसे बड़ा तीर्थ के यात्रा की जरूरत नहीं होती । उन्होंने यह भी सुनाया था कि वह जवानी में भी पैदल यात्रा कर घी चढ़ाकर आये थे अर्थात् दीप जलाने के लिये घर का घी लेकर जाते थे। उसी का अनुकरण कर वर्तमान में घी की बोली होती है आरती के लिये ।"
बौद्ध साहित्य में अंग, बंग, कलिंग में गौतम बुद्ध धर्म प्रचार के लिये आये थे ऐसा कोई उल्लेख नहीं है । जब कि भगवान महावीर इस क्षेत्र में एक बार नहीं कई बार आये थे ऐसा वर्णन जैन साहित्य में मिलता है। भगवती सूत्र में जिन १६ जनपदों का वर्णन है उनमें अंग, बंग तथा कलिंग सर्वोपरि हैं । प्रज्ञापना नामक पंचम उपांग में भारत वर्ष के आर्य अधिवासियों को नौ भागों में बाँटा गया है जिनमें क्षत्रियों का उल्लेख करते हुए प्रथम अंग, द्वितीय बंग, तृतीय कलिंग तथा चतुर्थ राढ़ क्षेत्र का उल्लेख