________________
जैनत्व जागरण.....
२०७
पार किया था । कभी ठहरने के लिए ग्राम भी नहीं मिलता था तब वे जंगल में वृक्षादिके नीचे ठहर जाते थे ।
बंग देश के वीरभूम, वर्धमान, बाकुड़ा, पुरुलिया आदि क्षेत्र जहाँ सराकजाति के लोगों का निवास हैं भगवान महावीर के विचरण पथ के गवाह है। इन्हीं लोगों के बीच विषम परिस्थितियों में रहकर भगवान महावीर ने अपनी तपस्या और साधना द्वारा यहाँ के लोक मानस को परिवर्तित किया। ___ "राढ़ अंचल में उनके साथ जो हुआ उसने यह सिद्ध कर दिखाया कि महावीर मनुष्य थे, ईश्वर नहीं थे, और यह कि मनुष्य में से ही ईश्वर प्रकट होता है, वह अलग किसी धातु की रचना नहीं है। उन्होंने सारे खतरे झेलकर यह साबित किया कि मनुष्य तन में ही परमात्मत्व की सारी संभावनाएं सन्निहित हैं बशर्ते वह भेद-विज्ञान के प्रखर औजार से जीव-अजीव को पृथक् कर सके। राढ़ के उपसर्ग उन्हें भेद-विज्ञान की ओर ले गये । उनका जीवन-दर्शन बनां अध्यात्म में भेद-विज्ञान, समाज में अभेद-विज्ञान, आचार में अहिंसा, विचार में अनेकान्त बनां । जिस मानवतावाद के वे जीवंत प्रतीक बने उसने सम्पूर्ण पूर्वी भारत को झकझोर दिया, करुणा/सहिष्णता की यह हवा केवल मगध-बंग पर ही ठहरी नहीं रही, आगे बढ़ी और उसने सारे देश को अपनी अहिंसक/प्रीतिपूर्ण भुजाओं में समेट लिया । वस्तु-स्वातन्त्रय का अकाट्य प्रतिपादन, जो उनके अपने जीवन में से प्रकट हुआ, इतना तेजस्वी था कि लोग उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके । इधर यज्ञों में परम्परित/रूढ़ जो कुछ हो रहा था, उसने तत्कालीन मनुष्य की संवेदनशीलता को नख-शिख तक झुलसा दिया था, महावीर ने उस आहत को अपनी अहिंसा की मृदु अंगुलियों से सहलाया, समर्थ बनाया और एक बार पुनः मुमुर्ष मानवता को पुनरूज्जीवित किया, इसलिए हम कहेंगे कि पूर्वी भारत न केवल भौतिक/पार्थिव सूर्य की उदय धरा है, वरन् वैचारिक क्रान्ति की प्रसविणी धरित्री भी है ।"
इतिहासकार नीहार रंजन राय कहते हैं - "जैन पुराण के ऐतिहासिकत्व को स्वीकार करने पर कहना होगा मानभूम, सिंहभूम, वीरभूम और वर्द्धमान इन चारों स्थानों के नाम जैन तीर्थंकर महावीर या वर्द्धमान के साथ जुड़े