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जैनत्व जागरण....
हुए हैं और आज भी ये सराक बहुलक्षेत्र है।"
"पूर्व भारत स्थित सराक गाँव व धरों में दीपावली व भगवान महावीर स्वामी के निर्वाण कल्याणक महोत्सव को अति धूमधाम के साथ मनाया। सच कहा जाए तो अनभिज्ञ सराक आज भी नहीं जानते हैं कि ये आग प्रज्ज्वलित कर इस तरह का धूमधाम क्यों मनाया करते है ।"
जैनागम के उल्लेखानुसार कल्पसूत्र के अन्तर्गत भगवान श्री महावीर का निर्वाण महोत्सव का विशेष उल्लेख पाया जाता है । इस उल्लेख में दीपावली की रात्रि से पूर्व भगवान महावीर पावापुरी नगरी में दो दिन धर्म देशना देकर मोक्षपद प्राप्त करते हैं । उस समय वहाँ उपस्थित देव-देवी नर-नारी मिलकर शोक सहित भगवान का निर्वाण महोत्सव मनाते हैं। आज जहाँ जल मंदिर स्थित है, वहाँ पर प्रभु की पार्थिव शरीर को अग्निदाह देकर वहा उपस्थित भक्तजन मांगलिक रूप में प्रभु महावीर की चिता की राख अपने साथ ले जाते हैं । उसका अनुसरण करते हुए साधारण जनता भी वहाँ से अवशेष राख मिट्टी आदि लेकर अपने घर जाते हैं और मांगलिक रूप में प्रयोग करते हैं । इसी क्रिया का अक्षरशः अनुसरण आज २६०० साल बीतने के बाद भी सराक लोग करते हैं ।
जैसे दीपावली की रात्रि घर के सभी पुरुष सदस्य पाट लकड़ी की मशाल बनाकर घर के मुख्य स्थल में जलाये हुए दीपक में उसे जलाकर गाँव के बाहर एक निर्दिष्ट स्थान में पहुँचाते हं तथा वहाँ सजाये हुए लकड़ी की चिता जलाते हैं । प्रदक्षिणा देते हैं । अन्त में अधजले हए अवशेष को अपने साथ घर लाकर मुख्य दरवाजे, अनाज कोठी आदि-आदि स्थानों पर शुभ प्रतीक के रूप में रखते हैं ।
यह क्रिया भगवान महावीर का निर्वाण महोत्सव ही है क्योंकि इसका मुख्य प्रमाण मशाल जुलूस में विशेष नारे के रूप में 'इंजौइ पिंजोइ' शब्द का प्रयोग किया जाना है।
* चीनी यात्री ने अपने यात्रा विवरण में बौद्धधर्म के सिवाय अबौद्धों के मन्दिरो को देवमन्दिरों के नाम से संबोधित किया है। इन देवमंदिरों में जैन मन्दिरों तथा पौराणिक संप्रदायों के मन्दिरो का समावेश होता है । (अनुवादक)