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जैनत्व जागरण......
॥ ॐ ह्रीँ श्रीँ श्री जीरावला पार्श्वनाथ रक्षां कुरु कुरु स्वाहा || १२. सराक जाति का इतिहास
आज से २६०० वर्ष पूर्व भगवान महावीर ने अपनी तपस्या और साधना के लिये जिस क्षेत्र का वरण किया था और जहाँ उनके जीवन की कई महत्वपूर्ण घटनाएं घटी थी उस राढ़ क्षेत्र में उस समय कौन लोग निवास करते थे, किस जाति के थे, कहाँ से आये थे, उनका क्या धर्म था, क्या जीवनशैली थी ? वर्तमान में आज उनकी क्या अवस्था है और किन परिस्थितियों और परिवेश में वे रह रहे हैं, यह गहनशोध का विषय है जो हमें अपने सारगर्भित अतीत की ओर जाने की प्रेरणा देता है और उन महत्वपूर्ण तथ्यों से हमें अवगत कराता है, जो सिर्फ जैन धर्म की पुष्टि नहीं करते, आदिस्रोत तक हमें ले जाते हैं तथा वर्तमान में अपनी प्रासंगिकता को प्रतिपादित करते हुए जीवन मूल्यों को एक आधार भी दे जाते हैं ।
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बंगाल के ७वीं शताब्दी से पहले के इतिहास के विषय में बहुत कम जानकारी उपलब्ध होती है । यहाँ तक कि इस क्षेत्र के निवासी भी अनभिज्ञ है । लेखक व इतिहासकार भी ७वीं शताब्दी के पहले के इतिहास में रुचि नहीं रखते । इसी लिए गंभीर रूप से कोई भी अनुसंधान इस विषय पर आजतक नहीं हुआ और जो थोड़ा बहुत हुआ भी है उसको प्रकाश में लाने का यत्न नहीं किया गया । इसका एक मूलभूत कारण है ७वीं शताब्दी से ब्राह्मण संस्कृति का प्रचार एवं पुनरुत्थान । जिस तरह दक्षिण भारत का इतिहास वीर शैवों द्वारा जैन-धर्मानुयायिओं के उत्पीड़न को दर्शाता है ठीक उसी प्रकार बंगाल में भी यह दशा रही । वीर शैवों की सेना वाहिनियों ने गाँव-गाँव में जाकर प्राचीन संस्कृति के निदर्शनों को नष्ट किया और लोगों को जबरन धर्म परिवर्तन करने को विवश किया। जो धर्म परिवर्तन के लिये तैयार नहीं हुए, उन्हें मौत के घाट उतार दिया । अभी तक हम लोग यह समझते थे कि विदेशी आक्रमणकारी जिनमें मुसलमान और अंग्रेज ही हमारी प्राचीन संस्कृति को नष्ट करने में तत्पर रहे । लेकिन वास्तविकता कुछ और ही दिखाई पड़ती हैं । ब्राह्मण पंथों की कट्टर उग्रवादी प्रवृत्ति