Book Title: Jainatva Jagaran
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

View full book text
Previous | Next

Page 176
________________ जैनत्व जागरण...... उस आक्रमण के समय भीखम सिंह राजाके शिशुपुत्र "मणि" को चतुर श्रावक (सराक) अपने घर पर ले गया, और छिपा दिया था । वर्गीगण जब तक वहां रहे तब तक उस बालक को श्रावक ने अपने ही घर में छिपा रखा था । सम्बलहीन अस्पृश्य श्रावकने एक दिन सोचा यदि मै इस राजकुमार को रखता हूँ तो राजमर्यादाका उलंघन करता हूँ, अत: उसने उस " मणिलाल कुमार को मणिहारा " गांव के संभ्रान्त ब्राह्मण के घर पर छोड दिया है। शिशु थोड़े दिनों में युवावस्था को प्राप्त किया । ई.स. १६७४ की साल में जब शिशु (मणि) द्वितीय रघुनाथ सिंहदेव के रूपमें राजा बना तब अपने पालक पिता स्वरूप उन श्रावकको उचित मर्यादा देकर सम्मानित किया था। उस दिन से सराकों को पुरोहितपद आदि सब कुछ मिले थे । संभवतः उस दिन से सराको की रीत रस्में हिन्दुओंकी तरह होने लगी थी । १७४ समालोचना को और भी आगे ले जाये । वितर्कित विषय को पूर्ण कर देना ही युक्ति युक्त है । इतिपूर्व ११वीं शताब्दी में सराकोंके जैनत्वका विलोप हुआ था और हिन्दुत्व में उतरण घटा था, फिर भी ई.स. १८६३ की साल में ई. टी. डलटन द्वारा रचित एक मूल्यवान लेखसे जानकारी मिली है, कि मानभूम जिले के अन्तर्गत (वर्तमान का पुरुलिया) झाँपडा गांव के सराकगण (श्रावकगण ) जैन धर्म के प्रति श्रद्धा रखते है एवं पारसनाथ (पार्श्वनाथ) भगवान को अपना आराध्यदेव मानते है । उनके लेख से यह भी पता चलता है कि झाँपडा पुरूलिया से १२ मील दूरी पर है । परिभ्रमणके समय ई.टी. डलटन को जितने भी सराक मिले है, वे सारे बुद्धिदीप्त एवं आत्ममर्यादा से संपन्न थे । ऐसे ही नहीं ई. टी. डलटन साहब ने उन सराकों को पार्श्वनाथ भगवानके उपासक कहकर वर्णन किया है । उन्होंने यह भी कहा है, सराकभाई सूर्य देखे बिना कभी आहार नही करते...। 1 "In 1863 I halted at a place called Jhapra, 12 miles from purulia and was visited by some villagers, who struck me as having a very respectable and intelligent appearance. They called themselves srawaks and they prided themselves on the fact that under our Government not one of their

Loading...

Page Navigation
1 ... 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324