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जैनत्व जागरण.....
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सराकजाति के वार्षिक अनुष्ठान सराकगण वैशाख महीनेसे वर्षकी परिगणना का प्रारंभ करते है। बंगाब्द वर्ष से परिगणना है, वैशाख और ज्येष्ठ यह दो महीनेमें सराकगण नाम संकीर्तनकी यात्रा करते है । पारि-पारि से एक एक दिन एक एक परिवार चने-गुड और पानीसे साधर्मिक की भक्ति करते है। चैतन्य महाप्रभ के बादसे नाम कीर्तनकी यह प्रथा चालू हुई है, मगर चने गुड़ और पाणि दान करनेकी प्रथा चाल है ही। संभवतः- साधर्मिकभक्ति का यह विकृत रूप है। ज्येष्ठ महीनेमें श्वसुर, साले अपने घर नूतन जमाइओं को बुलाकर कपड़े आदि देकर बहुमान करते है, और अन्य जमाइओं को मिठाई (पकवान) आदि भेजकर अपनी अदा पूर्ण करते है। आज भी यह रिवाज है, जैनों (सराको) के सिवाय यह अन्य किसी के नही है।
आषाढ़ : आषाढ़ महीने में आषाढ़ी पर्व मनाते है। शुष्क फल आदिके सब्जी खाने का रिवाज है, जिस फलो में रस सामान्य है, वैसे फलों की सब्जी खाने का रिवाज है, जैसे कण्टोला, तुरीया, कारेला आदि । आद्रा नक्षत्र के दिन सामूहिक आम खाने के लिये अपने कुटुंबियोंको बुलवाते है। और आम खाने का निषेध जाहिर करते है, उस दिनको आमवती कहतें
श्रावण : श्रवण करने का महीना है । गुरू आदि के योग न मिलने से वर्तमान में पुरोहित आदि से व्रत कथा सुनते है । व्याख्यान वाणी सुनने की प्रथा वर्षों से चली आ रही है। पहले सभी सुनते थे, आज व्रत करनेवाले ही व्रत-कथा सुनते है।
भाद्रपद : रात्रि जागरण का महीना है। इस महीनेमें उपदेश मूलक गीत संगीत से आहिंसा की धारा को अन्यों तक पहुंचाते है । पहले जैन परंपरा की पद्धति से महिलाए रात्रि को इकठ्ठी होकर सांझी की तरह गीत गाकर रात्रि जागरण मनाती थी । आज उसका रुप विकृत हो गया है । सराकों में भादु पूजन जागरण का अनुष्ठान मनाया जाता है ।
प्रसंगत : पंचकोट के राजा नीलमणि सिंहकी पुत्री का नाम भद्रावती