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जैनत्व जागरण......
है । जो आज के समयमें महत्वपूर्ण विषय नहीं रहा ।
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सराकों की शादीके सारे नियम बंगवासी हिन्दुओं के जैसे होने पर भी कुछ भिन्नता परिलक्षित होती है । हिन्दुओं की तरह सराकों की सगाई होती है। आईबुडो भात ( कौमार्य भात) दधिमंगल, नान्दीमुख, हलदी छांट, अनुष्ठान शरीर पर हलदी लगाई जाती है ।
वर वांदना पोखनें की क्रिया (सिर्फ सराकों मे है)
छादनतला - विवाह के मण्डपमें वर- -वधुको पाटन पर बिठाया जाता
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शुभदृष्टि - वर-वधु परस्पर दृष्टि मिलाते है ।
मालाबदल वर-वधु एक दूसरे के परस्पर गले में मालारोपन करते
सिन्दूरदान श्रावकों के मत मे 'सिन्दूरदान' सूर्य के साक्षीमें होता है, यानि कि सूर्योदय के एक प्रहरके बाद वर कन्याके माथे पर सिंदूर पहनाते है । हिन्दु धर्म मे रात को सिंदूर दान हो जाता है ।
(संभवत: जैन की परंपरामे यह रातको करना निषिध्द है) कुसुमटीका - सिंदूर दानके पश्चात होम करने की क्रिया होती है, और होम की राख और घी मिलाकर वर-वधु को तिलक किया जाता है, पश्चात् उपस्थित सभी को तिलक किया जाता है (यह क्रिया हिन्दुधर्म से भिन्न है, हो सकती है, जैनों की ही परम्परा हो )
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वधुभात - दूल्हा जब दुल्हनको लेकर अपने घर जाता है तो आत्मीय जनको वधुभात (भोजन) का अनुष्ठान कराते है ।
अष्टमंगल - शादी के आठ दिनके बाद जब जमाई पुनःश्वसुर (ससुर) घरमे आता है, तब अष्टमंगलका अनुष्ठान किया जाता है ।
द्विरागमन - वर दूंसरीबार ससुराल आता है, तब भी अनुष्ठान किया जाता है ।
सराकसमाजमें बाल विवाह की प्रथा थी, वर्तमान में नहीं है । विधवा विवाह नहीं होता है ।
छुटा छेड़ा की प्रथा नहीं है ।