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जैनत्व जागरण.....
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विषयमें "ई.टी. डलटन' साहेब ने लिखा है, वहाँ के ध्वंसावशेष में रहे जैन मन्दिर एवं अवशेष ही प्रमाण करते है, कि उस नदी की तटवर्ती भूमि जैनों (सराको) के हाथमें थी ।
..."the saraks appear to have colorized along the banks of the rivers and we find their temples ruins on the banks of the Damadar, the kansai is rich in architectural remain..."
उल्लेखनीय है कि अतीत के बुधपुर व पाकविडरा (जो वर्तमानपुरूलिया से ३० कि.मी. दूर पर है) के ऊपर होकर बनारस से लेकर ताम्रलिपि बन्दर पर्यन्त एक वाणिज्यिक मार्ग का अस्तित्व था । यह बन्दर मुख्यतः ताम्रप्तानि के काम में लिप्त था, अतः उसका नाम पडा था "ताम्रलिप्त"। उस रास्ते को केन्द्र कर जैन धर्मावलम्बी सराक सम्प्रदाय की सभ्यता और संस्कृतिका प्रादुर्भाव हुआ था ।
"...Another route from Tamluk direct to Banaras on Probably passed through pakbirra and Budhpur on the benks of the kansai near Manbazar,.........the fact that in those ancient times, the merchants who are credited with having built these old temples..." (west-bengal Districts gazetteers op. cit.P. 235
प्रसंगतः कहना ठीक है कि मानबजारके पार्श्ववर्ती इलाके में अभी इसी (सराक) सम्प्रदायके लोग नही रहते है । लुप्त सभ्यताकी स्मृति चिन्ह रूप वहाँ विद्यमान है, मात्र सराकों के पूर्व पुरूष के अतीत मन्दिर स्थापत्य भाष्कर्यके ध्वंसावशेष एवं ध्वंसस्तूप ।
सराकों की जाति मर्यादा पाने का रहस्य बंगभूमि पर जब वर्गी का आक्रमण हुआ था, उस समय पंचकोट पर भी आक्रमण हुआ था । राजपरिवार के सारे राजपुरूषों को वर्गीयों के द्वारा हत्या कर दी गई थी। उस समय मात्र एक शिशु राजपुत्र रह गया था ।