Book Title: Jainatva Jagaran
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Chandroday Parivar

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Page 69
________________ जैनत्व जागरण..... ६७ heroes current among Austric and Dravidians long attending the period of Aryans advent in India (1500 B.C.) appeared to have been rendered in the Aryan Language in late and garbled or improved version according to themselves to Aryan Gods and heroes worlds and it is these myths and legends to Gods, sagas which we largely find in puranas. "आस्ट्रिक और द्रविड़ों में आर्यों के यहाँ आगमन के पूर्व (ई. पू. १५००) देवताओं और वीरों की दंतकथाएँ प्रचलित थी । ये कथाएँ आर्य भाषा में बहुत समय बाद आयी जिनमें आर्य देवताओं और मान्यताओं के अनुसार सुधार या परिवर्तन हुआ और वे आर्यों के देवों एवं वीरों के रूप में बदल गए । पुराणों की कथाएं भी इसी प्रकार पैदा हुई ।" इस प्रकार हम देखते हैं कि वास्तविकता के मूल्यांकन केलिए निरपेक्ष दृष्टि से ब्राह्मण साहित्य का गवेषणापूर्ण अध्ययन करने की आवश्यकता है । इतिहासकार रोमिला थापर ने भी इस विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा है- “We are now finding evidence of Shaivite attacks on Jain temples, the destruction of temple, the removal of idols, the reimplanting of shaivite images in their place, this is a regular occurence.........Even temple were destroyed or Jain monuments were destroyed by Hindus pauticulurl by shaivites.” __ यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमारे समाज में शिखर पर बैठे हुए व्यक्ति सोये हुए हैं। अपने कर्तव्यों के प्रति सजग नहीं है, सच का सामना करने की वीरता उनमें नहीं रही है; सिर्फ अपने स्वार्थ के मद में आँखें मूंदे तमाशा देखते हैं और अपनी जय-जयकार सुनने की लालसा रखते हैं । अब भी अगर नहीं चेते तो हमारी परम्पराएं सिर्फ धूमिल ही नहीं होगी बल्कि समाप्त हो जाएगी और हम देखते, हाथ मलते और आपस में लड़ते रह जाएंगे। तीर्थंकरों द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों का सही मूल्यांकन हम तभी कर पाएंगे जब उसको सम्यक् रूप से जाने और उस पर चलने के लिए प्रतिबद्ध हो ।

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