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जैनत्व जागरण......
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के अनुसार बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य का निर्वाण चम्पापुर (अंग जनपद) में हुआ था अंतिम चौबीसवें तीर्थंकर वर्द्धमान महावीर का पावापुरी में और शेष बीस तीर्थंकरों का निर्वाण सम्मेत शिखर में हुआ जो मगध जनपद के हजारीबाग जिले में है । तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के नाम से सम्मेत शिखर को पार्श्वनाथ पर्वत भी कहा जाता है। रविवेषाणचार्य ने अपने पद्मपुराण में हनुमान जी का निर्वाण स्थान इसी पर्वत पर हुआ था उल्लेख किया है । वर्धमान कवि ने अपने दशभक्तवादि महाशास्त्र में रामचन्द्रजी का निर्वाण स्थान भी इसी पर्वत पर बतलाया है । बंगाल की सेंसस रिपोर्ट ४५७ पेज ११० में उल्लेख है कि प्राचीन काल में पारसनाथ हिल के समीप जैनों की बहुत बड़ी बस्ती थी । अतः यह निश्चित रूप से कह सकते हैं कि यहाँ पर श्रमण धर्म का उद्भव तथा विकास श्रेणिक बिम्बिसार के शासन काल से बहुत पहले हो चुका था । भगवान महावीर के उपरांत काल में भी श्रमण-श्रमणियों का इस प्रदेश में सतत विहार ( आवागमन) होते रहने से यह प्रदेश बिहार नाम से प्रसिद्ध हुआ । ई. पूर्व सातवीं शताब्दी में विहार में तीन प्रमुख जनपद थे
१. मगध जिसकी राजधानी राजगृह, २. विदेह जिसकी राजधानी वैशाली और ३. अंग जनपद जिसकी राजधानी चंपा थी ।
मगध : प्रज्ञापनासूत्र, सूत्रकृतांगसूत्र और स्थानांगसूत्र में मगध को आर्य जनपद कहा गया है। ऋग्वेद संसार की सबसे प्राचीनतम साहित्यिक रचना माना जाता है । पूर्वी भारत के विषय में ऋग्वेद में स्पष्ट रूप से नाम का उल्लेख नहीं मिलता लेकिन वहाँ मगध को कीकटों का देश लिखा है जहाँ पर गायें पर्याप्त दूध नहीं देती न उनका दूध सोमरस के साथ मिलता है । 'हे भागव तू प्रमगन्ध के सोमलता वाले देश को भली-भाँति हमारे हुँकार से भर दो।'
किं ते कृण्वन्ति कीकटेषु गावो नाशिरं दुहे न तपन्ति धर्मम् । आ नो भर प्रमगन्दस्य वेदो नैचाशाखं मधवन् रन्धया नः
ऋग्वेद, ३।५३|१४