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जैनत्व जागरण.....
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एक शाखा थी । इसी वंश में श्रेणिक बिम्बिसार, अजातशत्रु और उदायी प्रमुख राजा हुए । छठी शताब्दी ई. पूर्व में मगध उत्तर पूर्वी भारत का सर्वोच्च राज्य बन गया था । मगध की समृद्धि और विकास का स्रोत उसकी धातु सम्पदा थी जिसके विषय में श्री डी. डी. को का कथन है
“Magadha had something for more important : the metals, and proximity to the river.......... Rajgir had the first immediate source of iron at its disposal. Secondly, it stradded (with Gaya to which the passage was through denser forest.) The main route to India's heaviest deposits of iron and copper to the south cast in the Dhalbhum and Singhbhum districts........thus Magadha had a near monopoly over the main source of state craft, __ यह एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि तीर्थंकर जिस आर्य क्षेत्र में जन्म लेने वाले होते हैं उस क्षेत्र की समृद्धि और विकास पहले से ही आरम्भ हो जाता है। भगवान महावीर से पूर्व ही मगध की समृद्धि का प्रारम्भ हो चुका था और उनके समय में मगध एक महत्वपूर्ण साम्राज्य के रूप में केवल भारतीय इतिहास में ही नहीं बल्कि निर्ग्रन्थ धर्म और वैचारिक क्रान्ति का महत्वपूर्ण केन्द्रीय स्थल भी बन गया था जो अनेक उत्थान पतन के बाद भी डेढ़ हजार वर्षों तक कायम रहा । __मगध की राजधानी राजगृह के प्राचीन नाम ऋषभपुर क्षितिप्रतिष्ठ, चणकपुर, कुशाग्रपुर रहे थे । नौवें तीर्थंकर सुविधिनाथ के चार कल्याणक च्यवन, जन्म, दीक्षा और केवलज्ञान जमुई मंडल के काकन्दी में हुए थे। भगवती सूत्र के अनुसार काकन्दी में तैंतीस समणोवासग (श्रमणोपासक) को उल्लेख मिलता है जिससे पता चलता है कि कभी यहा तैंतीस श्रावक या जैन गृहस्थ निवास करते थे । चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर ने काकन्दी में विहार किया था। उनके कई शिष्य काकन्दी के निवासी थे। उन शिष्यों के नाम के साथ जनपद-बोधक नाम काकन्दक का उल्लेख मिलता है। काकन्दक का अर्थ है काकन्द के निवासी । जैन कल्पसूत्र की स्थविरावली