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जैनत्व जागरण.......
समवशरण हुए ।
यहीं सुदर्शन सेठ पर उपसर्ग हुआ । यहीं विचरते हुए चौदह पूर्वधर श्री शय्यंभव सूरि ने अपने मनक नामक पुत्र को दीक्षित करके उसके अध्ययनार्थ दशवैकालिक सूत्र की रचना की ।
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यहीं के पूर्णभद्र चैत्य में भगवान महावीर ने कहा था कि जो अष्टापद पर आरोहण करता है वह उसी भव में मोक्षगामी होगा ।
भगवान महावीर ने भगवती सूत्र के पंचम शतक का दशम उपदेश यहाँ पर दिया था । औपपातिक सूत्र में चंपापुरी का बहुत ही विस्तार से वर्णन मिलता है । उसमें लिखा है
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भगवान महावीर के समय में चम्पापुरी अंग देश की राजधानी थी । इसके स्वामी दधिवाहन को शतानीक को 'शाम्बीपति ने हराकर पदच्युत कर दिया था और बाद में कोणिक ने इसे मगध में मिला लिया और पितृत शोक से राजगृह से राजधानी हटाकर चम्पानगरी को विकसित कर राजधानी बना ली थी । औपपातिक सूत्र ( उववाई उपांग) में चम्पानगर का बड़ा ही विशद वर्णन है । यह आचारांग का उपांग है अतः यह सूत्र अति प्राचीन और प्रामाणिक है । तत्कालीन भारतीय संस्कृति के इतिहास में इन वर्णनों का बड़ा भारी महत्व है । नगर के बाहर और भीतर बड़े - बड़े उद्यान, तालाब, बगीचे, कुए, बावड़ी आदि थे । शालीनता सभ्यता एवं सौन्दर्य युक्त सुरक्षित नगर ऋद्धि, समृद्धि से परिपूर्ण था । यहाँ बहुत से अर्हतचैत्य जिनालय थे । इसका उद्यान बडा ही विशाल और मनोहर था, जहाँ भगवान महावीर का समवसरण होता था । भगवान महावीर के चातुर्मास वर्णन में चम्पा और पृष्टचम्पा में चातुर्मास करने का उल्लेख मिलता " चंपंचपिट्टिचंपंच नीसाए तओ अन्तरावासे वासा वासं उवागए" (कल्पसूत्र) यहाँ के महाराजा कोणिक और धारिणी रानी श्रमण भगवान महावीर के परम भक्त थे जिनका भी उववाई सूत्र में वर्णन है ।
श्री जिनप्रभसूरिजी ने कलिकुण्ड कुर्कटेश्वर कल्प में लिखा है कि अंग जनपद में करकण्डु राजा के राज्य में चम्पानगरी से निकटवर्ती कादम्बरी