________________
जैनत्व जागरण.....
वंश का प्रारम्भ हुआ। उसके बाद नंदवंश का राज्य स्थापित हुआ । नंदवंश के सम्राट नंदीवर्धन ने कलिंग देश को जीतकर वहाँ से जिन प्रतिमा को लाकर पाटलीपुत्र में प्रतिष्ठित की । इस वंश का अन्त मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त ने किया। लगभग इसी समय भगवान महावीर के छठे पटधर भद्रबाहु स्वामी हुए । ऐसा माना जाता है कि सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने अंतिम समय इन्हीं भद्रबाहु स्वामी से दीक्षा लेकर दक्षिण में चले गये । भद्रबाहु स्वामी के बाद उनके पट्टधर स्थूलिभद्र स्वामी हुए जिनके समय में जैन सूत्रों की प्रथम वाचना पाटलीपुत्र में हुई। पटना के लोहानीपुर से मौर्य कालीन निर्ग्रन्थ मूर्ति मिली है । यह भी कहा जाता है कि पाटलीपुत्र के गुलजार बाग में . स्थलिभद्र स्वामी का मंदिर था । It is quite in keeping with the tradition that there should be a temple of Sthulibhadxa in the city which is located in Gulzarbagh ward. (Alltekar and Mishra Report Kum. Exca. 1951-55 p.10)
ऐसी मान्यता है कि स्थूलिभद्र स्वामी का निर्वाण उसी स्थान पर हुआ था । दूसरा महत्त्वपूर्ण स्थान पटना में आगमकुआं है । यूवानचंग ने इस कुएँ को अशोक का नरक कहा है जो गर्मजल का कडाहा (हंडा) हुआ करता था । एक बार पाटलिपुत्र के राजा के आदेशानुसार एक जैन श्रेष्ठी सुदर्शन भट्ठी में कूद गये किन्तु शासन देवी की सहायता से वे सुरक्षित बच गये । जब राजा को उनकी आध्यात्मिक शक्ति के बारे में ज्ञान हुआ तो उसने उन्हें मुक्त कर दिया। सुदर्शन का निर्वाण मंदिर आगम कुएँ के बगल में है।
__३२६ ई. पूर्व भारत में सिकन्दर के आक्रमण की चर्चा यूनानी इतिहासकारों ने विस्तृत रूप में की है। जिसके परिणाम बहुत ही दूरगामी हुए । भारतीय दृष्टिकोण से इसका महत्त्व इस बात में है कि उसने भारत
और पश्चिमी देशों के बीच आवागमन का मार्ग खोल दिया, अन्यथा भारतीय इतिहास में उसके आक्रमण का कोई विशेष स्थान नहीं है । उसे महान् सैनिक सफलता भी नहीं कह सकते । जो कुछ भी सफलता उसके हाथ लगी वह छोटी-छोटी जातियों और राज्यों पर धीरे-धीरे प्राप्त मात्र थी।