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जैनत्व जागरण......
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उसमे वैष्णव और जैन की संमिश्रमण संस्कृति है । आज इनके पास न सदृढ धर्मवृत्ति है और न कोई अपनी स्वकीय संस्कृति है ।
सराक जाति मूलत : जैन ही है इनका परिचय उनके गौत्र द्वारा मिलता है उनकी गौत्र प्रथा में ओत-प्रोत होकर जुडे है जैन तीर्थंकरोके
नाम ।
सराकगण मूलत : जैन धर्मावलम्बी है यह बात इ. टि. डलटन, गेटे, सर हरबर्ट रिसले, कुपलेंड, W. W. Hunter आदि अनेक अंग्रेज़ो ने अपने ग्रन्थमें उल्लेख किया है ।
" सरांक" यह शब्द निःसंदेह श्रावक शब्द का अपभ्रंश शब्द है । प्राचीन काल में सराकों के बुजुर्ग व्यक्तिओं ने अपने सरनेमकी जगह श्रावकके बदलेमें "सरावक" ऐसा शब्द लिखते थे, पश्चात् सरावरक ( Surname) में से धीरे धीरे कालान्तरमें "व" का लोप हो जाने से "सराक" शब्द ना है ।
यह " श्रावक" का अर्थवाची रूढ शब्द " सराक" शब्द बन गया
है ।
एक समय वृन्दावन सराक नाम के एक सज्जन सराकसमाजके अधिपति हुए थे (सराकसमाज पति) उनके पास समाज की पूर्ण सत्ता थी, वे जैन सम्प्रदायके साथ पूर्ण रूपेन सम्पर्क रखते थे । जैन की आचार संहिताको भली भांति जानते भी थे । उनके द्वारा लिखी गई " सरावक " व्याख्या निम्नरूप है
सरावक
स
वचन, क - क्रिया जिसमें वे सरावक | सम्यग् रूपसे शोभती है वचन क्रिया जिसकी अथवा सभ्यता
है जिसकी वचन क्रिया में, वह सरावक है ।
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'श्रावक" शब्द के व्युत्पतिगत अर्थ -
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श्रा
श्रद्धा
व विवेक
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व सम्यग, रा - राजते,
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