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जैनत्व जागरण.....
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मेदिनीपुर जिलांतर्गत तमलूक का प्राचीन नाम है। २. प्राचीन कोटिवर्ष नगर दिनाजपुर जिले में अवस्थित था । ३. पौंड्रवर्धन नगर बगुड़ा जिला अन्तर्गत महास्थानगढ़ नामक स्थान पर अवस्थित था । ऐसी विद्वानों की धारणा है। ४. कर्व्वट नगर का उल्लेख महाभारत में भीम की दिग्विजय के प्रसंग पर मिलता है। वराहमिहिर के "बृहत्संहिता" नामक ग्रन्थ में भी कर्व्वट जनपद का उल्लेख है । यह जनपद "राढ़" अर्थात् पश्चिम बंगाल में ताम्रलिप्ति के समीप ही अवस्थित था । ताम्रलिप्ति, कवट, कोटिवर्ष एवं पौंड्रवर्धन ये चारों स्थान गुप्तयुग में विशेष प्रसिद्ध थे । इस की पुष्टि के लिये प्रचुर प्रमाण उपलब्ध हैं। पूर्वोक्त जैन "कल्पसूत्र ग्रंथ" ई. स. ४५८ में सम्राट, कुमारगुप्त के शासन काल में (ई.स. ४१५ से ४५५) लिपिबद्ध हुआ था। इस लिए ऐसा अनुमान करना अनुचित नहीं है कि गुप्तसम्राट के शासन काल में बंगालदेश में ताम्रलिप्ति, कोटिवर्ष आदि चारों स्थानों में जैनधर्म विशेष प्रबल था । पूर्वोक्त पहाड़पुर के ताम्रपत्र से वह पौंड्रवर्धन नगर से अधिक दूर नहीं था। अतएव इस बात को माना जा सकता है कि बटगोहाली बिहार के निपँथ जैन पौंड्रवर्धनिया शाखा के अनुयायी थे । एवं इस समय से कुछ उत्तरवर्ती काल में यूंसांग ने पौंड्रवर्धन में जिन समस्त निग्रंथों को देखा था, वे भी इसी शाखा के अनुयायी थे । फाहियान एवं हूंसांग दोनों . ने ही ताम्रलिप्ति नगर में निवास किया था । और उन में से किसी ने भी
जैन संप्रदाय के सम्बन्ध में कुछ नहीं लिखा । किन्तु आप को ज्ञात हो गया है कि ताम्रलिप्ति जैनों का एक बड़ा केन्द्र था । इसी लिये हम पहले कह आये हैं कि यूंसांग की मौनता से कोई सिद्धांत निश्चित करना उचित नहीं है। एवं जिन सब स्थानों का वर्णन करते समय उस ने जैनों के सम्बन्ध में कुछ भी उल्लेख नहीं किया उन सब स्थानों में भी थोड़े बहुत जैन अवश्य ही थे, ऐसा माना जा सकता है।
हम देखते हैं कि गुप्तयुग में इस देश में जैन, बौद्ध, वैष्णव तथा शैव ये चारों धर्म संप्रदाय ही अधिक प्रतिष्ठा सहित विद्यमान थे । यहां पर एक प्रश्न उपस्थित होता है किये धर्म-संप्रदाय किस प्रकार और किस समय बंगालदेश में विस्तार पाये, और किस धर्म ने सर्व प्रथम इस देश