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जैनत्व जागरण......
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में पहुँचा उनमें से इन पाँच का उल्लेख अशोक के लेखों में मिलता हैसीरिया और पश्चिमी एशिया का राजा अन्तियोक थियोस मिस्त्र का राजा तुरमय द्वितीय (फिलोडेल्फस), मकदुनिया का राजा अन्तिकिन, साइरीन का राजा मग और एपिरस का राजा सिकन्दर ।
धर्म के मूल तत्त्वों को बताकर जनता के चरित्र को उठाना उसका प्रधान लक्ष्य और चिन्ता थी । इसलिए उसने चट्टानों पर लेखों को अंकित कराया जो लगभग २३०० वर्ष बीत जाने पर भी उसके जीवन की पवित्रता और विचारों की उच्चता के अमर स्मारक हैं । धर्म के जिस स्वरूप पर उसने जोर दिया, वह किसी धार्मिक सिद्धान्त की अपेक्षा सदाचार के नियमों का एक संग्रह है । उसने न तो कभी तत्त्वविज्ञान की चर्चा की और न ईश्वर और आत्मा का उल्लेख किया । उसने केवल जनता से अपनी वासनाओं को नियन्त्रित करने, अपने आंतरिक विचारों में जीवन और आचरण को पवित्र बनाने, अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णु होने, जानवरों को न सताने और न मारने, उनकी चिन्ता रखने, सबके प्रति उदार होने, माता, पिता, गुरु, सम्बन्धियों, मित्रों और साधुओं के प्रति उचित सम्मान प्रकट करने, नौकरों और दासों के प्रति उदारता तथा दया का भाव रखने और सर्वोपरि सत्य बोलने को कहा । ये ही श्रमण संस्कृति के आधारभूत तत्त्व है जो इसी प्राच्य भूमि से दुनिया के दूसरे देशों में फैले ।
सम्राट ने इन सत्यों का न केवल प्रचार किया यवन् स्वयं भी उन पर आचरण किया । उसने आखेट और माँस- भक्षण आदि त्याग दिया । उसने मनुष्य और पशुओं के लिए न केवल अपने साम्राज्य में वरन् पड़ोसी राज्यों में भी चिकित्सालय स्थापित किए । उसने ब्राह्मणों और अन्य धर्मावलंबियों को मुक्त - हस्त दान दिया । उसके लेखों से यह भी ज्ञात होता है कि उसने मनुष्यों और पशुओं के उपयोग के लिए सड़कों के किनारे पाठशालाएँ बनवाई, कुएं खुदवाये और पेड़ लगवाये । पशु वध रोकने के लिए उसने अनेक नियम जारी किये ।
अशोक की माता धर्मा के गुरु आजीवक सम्प्रदाय के थे । गया के पास बराबर की पहाड़ी में गुफाओं की श्रृंखला है जिन्हें अशोक और दशरथ